घुटनों के दर्द, अकड़न और सूजन आजकल आम समस्याएं बनती जा रही हैं। रूमेटिक आर्थराइटिस (RA)/ वातरक्त और गाउट (Gout) दो ऐसी स्थितियां हैं जो जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति इन समस्याओं के प्रभावी समाधान प्रदान करती है। आइए इन्हें आयुर्वेद के नजरिए से समझें।

एक बुजुर्ग हथेली के दर्द वाले स्थान पर मालिश करते हुऐ

रूमेटिक आर्थराइटिस (वातरक्त)

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: RA को आयुर्वेद में “वातरक्त” कहा जाता है, जहाँ वात दोष के प्रकोप से रक्त धातु दूषित हो जाती है। एलोपैथी इसे ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर मानती है जो विशेष रूप से छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार यह पूर्णतः इलाज योग्य स्थिति है।

मुख्य आयुर्वेदिक औषधियाँ

  • अमृतादि गुग्गुलु: सूजन व दर्द निवारक
  • कैसोर गुग्गुलु: रक्त शोधक
  • महातिक्त घृत: रक्तशोधन व पाचन सुधार
  • महारास्नादि क्वाथ चूर्ण: जोड़ों की अकड़न कम करे
  • सिंघनाद गुग्गुलु: वात-कफ संतुलक
  • खुलसा चूर्ण: कब्ज निवारण (आमदोष दूर करने हेतु)

बाहरी उपचार प्रक्रिया

  1. बराबर मात्रा में अजवाइन, सेंधा नमक व फिटकिरी पानी में उबालें
  2. प्रभावित जोड़ पर 15 मिनट भाप सेंक (सावधानीपूर्वक)
  3. गर्म पानी में कपड़ा भिगोकर सेक करें जब तक पानी ठंडा न हो जाए
  4. सूखे हाथों पर समान मात्रा में मिलाएं तथा सेके स्थान पर वाह्यलेपन करें –
    • महानारायण तेल
    • महाविषगर्भ तेल
    • महामाष तेल

उन्नत चिकित्सा (यदि लाभ न मिले)

वृहद्वात चिंतामणि रस (स्वर्ण भस्म युक्त) अन्य सहायक दवाओं के साथ। उपरोक्त सभी औषधियाँ साथ चलती रह सकती हैं।

गाउट (गठिया) / यूरिक एसिड

मूल कारण: यह चयापचय असंतुलन है जहाँ प्यूरीन टूटने से यूरिक एसिड बढ़ता है। मांसाहार, अंडे, फुल-क्रीम दूध, अल्कोहल व कोल्ड ड्रिंक्स मुख्य ट्रिगर हैं।

आहार प्रबंधन

  • परहेज: मटर, पालक, गोभी, भिंडी, अरबी, ओटमील, डाइयूरेटिक्स
  • हितकारी: केला, सेब, नींबू, आलू, लौकी, करेला, गोखरू
  • कॉफी: 2 कप/दिन (यूरिक एसिड कम करने में सहायक)

प्रमुख आयुर्वेदिक औषधियाँ

  • योगराज गुग्गुल: यूरिक एसिड नियंत्रण में प्राथमिक विकल्प
  • चन्द्रप्रभा वटी: चयापचय सुधारक
  • महारास्नादि काढ़ा: सूजन निवारक
  • नोट: वैद्य द्वारा हस्तनिर्मित औषधियाँ प्राथमिकता दें

गाउट प्रबंधन में नियमित जीवनशैली का विशेष महत्व है। सुबह 5-6 बजे उठकर गुनगुने पानी के साथ हरीतकी चूर्ण का सेवन आंतों की शुद्धि करता है। भोजन के नियमों में कटु-तीक्ष्ण स्वाद से परहेज और मधुर-कषाय रस का प्राथमिकता से सेवन करें। योग में वज्रासन, गोमुखासन और पवनमुक्तासन विशेष लाभकारी हैं, जबकि प्राणायाम में भस्त्रिका और कपालभाति शरीर के मेटाबॉलिज्म को संतुलित करते हैं। रात्रि में दर्द वाले जोड़ पर राई के तेल में लहसुन पकाकर लगाने से तीव्र राहत मिलती है। मौसमी फलों में चेरी (Cherry) का विशेष उल्लेख मिलता है जो यूरिक एसिड स्तर को 35% तक कम कर सकती है। अध्ययन बताते हैं कि विटामिन-सी युक्त आंवला रस का नियमित सेवन गाउट अटैक की आवृत्ति को 40% कम कर देता है।

वातरक्त और गाउट में आहार समय (मील टाइमिंग) का विशेष महत्व है। सूर्योदय से 1 घंटे के भीतर गुनगुने पानी के साथ त्रिफला चूर्ण लेना आंतों को शुद्ध करता है। दोपहर 12 से 2 बजे के बीच मुख्य भोजन लें क्योंकि इस समय पाचन अग्नि सबसे प्रबल होती है। रात्रि 7 बजे से पहले हल्का भोजन कर लें – मूंग दाल खिचड़ी या जौ की रोटी आदर्श विकल्प हैं। भोजन के 30 मिनट बाद अजवाइन-सौंफ का काढ़ा पाचन में सहायक है। शाम 5-6 बजे यष्टिमधु (मुलेठी) और दालचीनी का काढ़ा सूजन कम करता है। इन छोटे-छोटे समय प्रबंधन के नियम औषधियों के प्रभाव को 50% तक बढ़ा देते हैं।

महत्वपूर्ण निर्देश

उपरोक्त सभी सुझाव सामान्य दिशानिर्देश हैं। एक योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक रोगी की प्रकृति, रोग की गहराई और समग्र स्वास्थ्य के आधार पर व्यक्तिगत उपचार योजना बनाते हैं। औषधियों का प्रयोग कम से कम एक माह तक नियमित करें।

निष्कर्ष: वातरक्त और गाउट दोनों ही आयुर्वेद में प्रभावी ढंग से प्रबंधनीय हैं। चिकित्सकीय पर्यवेक्षण में औषधियों के साथ आहार-विहार में अनुशासन महत्वपूर्ण है। सही उपचार और धैर्य से इन स्थितियों पर पूर्ण विजय संभव है।

अस्वीकरण: यह जानकारी चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं है। कोई भी उपचार प्रारंभ करने से पूर्व अपने आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।