20 अप्रैल 1902 – मैडम क्यूरी द्वारा रेडियम की खोज: कैंसर उपचार

**परिचय:** 
साल 1902 का 20 अप्रैल का वह दिन कैंसर उपचार के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया, जब मैरी क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी ने *रेडियम* नामक एक रहस्यमय तत्व को खोज निकाला। यह खोज न केवल रसायन विज्ञान के लिए, बल्कि चिकित्सा, ऊर्जा और परमाणु शोध के क्षेत्र में भी एक मील का पत्थर साबित हुई। लेकिन यह सफर आसान नहीं था—इसमें लगन, संघर्ष और वैज्ञानिक साहस की एक अद्भुत मिसाल छिपी है। आइए, इस यात्रा को विस्तार से समझें।

### **1. मैरी क्यूरी: एक अदम्य जिज्ञासा की शुरुआत** 

मैरी क्यूरी (जन्म: मारिया स्क्लोडोव्स्का, 1867) का जन्म पोलैंड में हुआ था। उन्होंने पेरिस की सोरबॉन यूनिवर्सिटी से भौतिकी और गणित की पढ़ाई की, जहाँ उनकी मुलाकात पियरे क्यूरी से हुई। दोनों ने न केवल विवाह किया, बल्कि विज्ञान के प्रति एक साझा जुनून भी विकसित किया। 

**प्रेरणा का स्रोत:** 

1896 में हेनरी बेकरेल ने यूरेनियम से निकलने वाली “अदृश्य किरणों” (रेडिएशन) की खोज की थी। मैरी ने इस घटना को गहराई से समझने का फैसला किया और अपनी शोध का विषय चुना—”रेडियोएक्टिविटी” (विकिरणता)। 

### **2. रेडियम की खोज: चुनौतियाँ और सफलता** 
**कच्चा माल और प्रयोगशाला:** 

क्यूरी दंपति ने *पिचब्लेंड* नामक यूरेनियम अयस्क पर शोध शुरू किया। हैरानी की बात यह थी कि पिचब्लेंड से निकलने वाला विकिरण यूरेनियम से 300 गुना अधिक था! इससे साफ था कि अयस्क में कोई *अज्ञात तत्व* मौजूद है। 

**संघर्ष का दौर:** 

**भौतिक स्थितियाँ:** उनकी प्रयोगशाला एक छोटी, ठंडी और नमीभरी कोठरी थी, जिसे मैरी “शेड” कहती थीं। 
– **मात्रा का संकट:** रेडियम अयस्क में सिर्फ 0.1 ग्राम प्रति टन की मात्रा में था। 1 ग्राम रेडियम निकालने के लिए उन्हें **10 टन पिचब्लेंड** को संसाधित करना पड़ा! 
– **वित्तीय दिक्कतें:** पिचब्लेंड महँगा था, इसलिए उन्होंने ऑस्ट्रिया से कचरा अयस्क मुफ्त में प्राप्त किया। 


**सफलता की घड़ी:** 

1902 में, चार साल के अथक परिश्रम के बाद, मैरी ने 0.1 ग्राम शुद्ध रेडियम क्लोराइड को अलग करने में सफलता पाई। यह तत्व इतना चमकदार था कि अंधेरे में नीली-हरी रोशनी बिखेरता था। 

### **3. रेडियम का महत्व: विज्ञान और समाज पर प्रभाव** 

**वैज्ञानिक क्रांति:** 
– रेडियम ने *रेडियोएक्टिव डिसइंटीग्रेशन* (परमाणु विखंडन) की समझ को बदल दिया। 
– इससे पता चला कि परमाणु अविभाज्य नहीं, बल्कि ऊर्जा उत्सर्जित करने वाले स्रोत हैं। 

**चिकित्सा में उपयोग:** 

1920 के दशक तक रेडियम का उपयोग कैंसर उपचार (रेडियोथेरेपी) में होने लगा। “क्यूरी थेरेपी” ने लाखों जानें बचाईं। 

**दुखद पहलू:** 

उस समय रेडियम के हानिकारक प्रभावों (जैसे DNA को नुकसान) से अनजान लोग इसे सौंदर्य प्रसाधन और घड़ियों की सुइयों में इस्तेमाल करने लगे, जिससे कई लोगों की मौत हुई। मैरी क्यूरी खुद भी विकिरण के संपर्क में आने से 1934 में ल्यूकेमिया से गुज़रीं। कैंसर उपचार को नई दिशा देने वाले की मृत्यु कैंसर से ही हुई। रेडियम का संतुलित विकिरण कैंसर ठीक करता है, अधिक कैंसरग्रस्त करता है।

### **4. मैरी क्यूरी की विरासत: ग्लोबल प्रभाव** 

– **नोबेल पुरस्कार:** 1903 में भौतिकी (पियरे और बेकरेल के साथ) और 1911 में रसायन विज्ञान (अकेले) में नोबेल जीतकर वह पहली महिला बनीं जिसे दो बार यह सम्मान मिला। 
– **महिलाओं के लिए प्रेरणा:** उन्होंने विज्ञान में महिलाओं की भागीदारी के द्वार खोले। आज भी “क्यूरी इंस्टीट्यूट” शोध का केंद्र है। 

**निष्कर्ष:** 

मैडम क्यूरी की रेडियम खोज सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि मानवीय दृढ़ता की मिसाल है। उनका कहना था—*”जिंदगी में किसी चीज़ से डरो मत, समझो उसे।”* आज भी उनकी यह सीख विज्ञान और समाज को प्रेरित करती है। रेडियम की खोज ने हमें सिखाया कि प्रकृति के रहस्यों को जानने की ललक ही मानव प्रगति का आधार है, कैंसर उपचार को नया आयाम मिला इससे ही। 

**सन्दर्भ:** 

– मैरी क्यूरी की आत्मकथा *”पियरे क्यूरी”* (1923)। 
– रेडियम के चिकित्सीय उपयोग पर शोध पत्र, *जर्नल ऑफ़ रेडियोलॉजी*। 
– नोबेल प्राइज आर्काइव्स के ऐतिहासिक दस्तावेज़। 


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