आयुर्वेद के अनुसार मसूढे से खून आना और दर्द होना जैसी समस्याओं का मुख्य कारण शरीर में पित्त दोष का खराब होना है। जब लीवर सही से काम नहीं कर रहा तो शरीर में सामान रूप से वितरित पित्त एक ही दिशा की ओर बढ़ने लगते हैं, जिससे वहां अतिरिक्त पित्त जमा हो जाता है। समाधान है ऐसे जरीबूटियों का वाह्यलेपन तथा सेवन जो लोकल और अंदरूनी दोनों जगह पित्त का शमन करें – मुलेठी, लौंग, तुलसीपत्ते और भस्म की बात करें तो – कसीस भस्म, स्फटिक भस्म, गंधक रसायन ।

मसूड़ों के स्वास्थ्य को जल्दी से कैसे सुधारें :
1.मुलेठी में बायोएक्टिव घटक लाइकोरिसिडाइन होते हैं, जो मुंह में कैविटी पैदा करने वाले बैक्टीरिया के विकास को रोकने में बेहद फायदेमंद होते हैं। यह न केवल मसूड़ों से खून बहने और मामूली घावों को ठीक करने में मदद करता है बल्कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में स्राव में सुधार करके मुंह को साफ करने, लार को बढ़ाने में भी मदद करता है। इसके लिए आप मुलेठी की जड़ के पाउडर से ब्रश करें।
2.लौंग के तेल में बायोएक्टिव घटक यूजेनॉल होता है जोकि इसका एक मजबूत रोगाणुनाशक गुण है। यह तेल मसूड़ों से खून आना, दांत दर्द, मसूड़े की सूजन, मुंह के छाले, मसूढ़ों की सूजन आदि के इलाज में सहायक है। इसके सुगंधित गुणों के कारण, यह सांसों की दुर्गंध को रोकने में भी फायदेमंद है। रुई के एक छोटे टुकड़े को लौंग के तेल में डुबोएं और दर्द और सूजन को कम करने के लिए इसे पूरे मसूड़ों पर लगाएं।
3.तुलसी की पत्तियों को सुखाकर उनका पाउडर बनाकर दांतों को ब्रश करने से भी मसूड़ों की समस्याओं में फ़ायदा मिलता है। वैद्यों तथा जरीबूटियों के दूकान में यह चूर्ण उपलब्ध रहता है। तुलसी की हरी पत्तियां दांतों को मज़बूत बनाकर उनकी सफ़ेदी बढ़ाती हैं। तुलसी पायरिया (मसूड़ों से खून आना) जैसी दंत समस्याओं में भी उपयोगी है।
आयुर्वेदिक चिकित्सा :
ये हुऐ जल्दी के घरेलू उपाय। आयुर्वेद में पूर्ण चिकित्सा उपलब्ध है इसकी। पायरिया (दांत दर्द,मसूढो से पस अथवा रक्त का आना) कहते इसे।
1.यदि मसूढे सिकुङने की समस्या एक साल से कम पुरानी है तो कुक्कुटाण्डकत्वक भस्म का सेवन ही काफी है। अधिक तो प्रवाल पिष्टी भी जोङ दें।
2. गंधक रसायन 250mg
आरोग्यवर्धिनी 250mg
कसीस भस्म 250 mg
स्फटिक भस्म 250mg
खादिरादी वटी 250mg
शुध्द सोना गेरू 500mg
सुबह शाम 20ml पानी में मिश्रित करके 10 मिनिट मुंह मे रखे फिर निगल जाय।
अन्य घरेलू उपाय
- रात्रि को सोते समय हल्दी 1ग्राम में शहद मिलाकर मंजन कीजिये। बिना कुल्ला किये रात्रि विश्राम करें।
- सुबह एक चम्मच सोंठ चूर्ण का काढा बनायें। उसमें एक चम्मच एरण्ड तेल गर्म में ही मिला कर गर्म ही पीयें। दोपहर भोजन के बाद त्रिफला चूर्ण 3 ग्राम गुनगुने पानी से सेवन। रात्रि को सोते समय हल्दी 1ग्राम में शहद मिलाकर मंजन कीजिये। बिना कुल्ला किये रात्रि विश्राम करें।
- वैसे टूथपेस्ट या मंजन कौन सा उपयोग करते ? आयुर्वेद में मसूड़ों को मज़बूत बनाने के लिए, हल्दी, सेंधा नमक और सरसों के तेल से बना पेस्ट की सलाह दी जाती है, जरूरत भर मात्रा में तुरंत बना कर उपयोग, बचा कर न रखें । इस पेस्ट को मसूड़ों पर लगाकर हल्के हाथों से मसाज करें और फिर गर्म पानी से कुल्ला कर लें। चाहें तो टूथब्रश में लगा कर भी ब्रश कर सकते हैं। इससे मसूड़े मज़बूत होते हैं और कीटाणु नष्ट होते हैं। साथ ही, मसूड़ों की सूजन, दांतों का दर्द और मसूड़ों से खून आना भी बन्द होता है।
कवलाग्रह :
ऑयल पुलिंग अभ्यास भी कहते इसे। यानी तेल से कुल्ला करना। दांतों की सड़न,मसूड़ों से खून आना और दांतों और मसूड़ों को मजबूत करने के लिए इसका व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। यह अभ्यास सुबह की दिनचर्या का एक हिस्सा है, जिसमें आप एक चम्मच तिल या सूरजमुखी का तेल लेते हैं, और इसे अपने मुंह में 10 – 20 मिनट तक घुमाते हैं। और फिर कुल्ला कर देते हैं। सबसे बढिया समय – स्नान के वक्त यह करें।
आगे रोकथाम हेतु (Prophylaxis):
“दंत धवनी” इसे आम भाषा में दातून के नाम से जाना जाता है। इसमें ज्यादातर नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। इस अभ्यास में एक सिरे से नीम की डंडी को चबाना होता है, और निकलने वाले रस को अपने दांतो पर घुमाना होता है।इसे चबाने से जीवाणुरोधी एजेंट निकलते हैं, जो लार के साथ मिल जाते हैं और मुंह में हानिकारक रोगाणुओं को मारते हैं, जिससे दांतों पर बैक्टीरिया का संचय नहीं होता है। इसके अलावा बबूल और मुलेठी की डंडी का भी इस्तेमाल किया जाता है। नियमित उपयोग हेतु बबूल ही बेहतर, नीम दातुन का अधिक समय प्रयोग पुरुषों के कामशक्ति को क्षीण करता है।
मसूढे, दांतों की समस्या देखते ही लिवर की जांच करायें – Liver Function test (blood test). यदि क्षतिग्रस्त है तो आयुर्वेद में इसकी पूर्ण चिकित्सा उपलब्ध है।
आयुर्वेद में दन्त-चिकित्सा :
भले ही दंत चिकित्सा आयुर्वेद की एक विशेष शाखा नहीं थी, फिर भी इसे इसकी सर्जरी प्रणाली में शामिल किया गया था। प्राचीन भारत में, मौखिक गुहा की विकृति, सजीले टुकड़े और संक्रमण जैसी समस्याओं को प्रबंधित और यहां तक कि ठीक भी किया जाता था।
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References :
- https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC3131773/
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