भारतवर्ष अंग्रेजों का गुलाम क्यों बना? हम तब कहाँ चूके और आज भी कौन सी गलतियाँ दोहरा रहे हैं?
इतिहास, सिर्फ बीती हुई घटनाओं का लेखा-जोखा नहीं होता, बल्कि वह एक ऐसा आईना होता है, जो हमें हमारे वर्तमान और भविष्य को बेहतर बनाने की सीख देता है। भारतवर्ष का अंग्रेजों का गुलाम बनना, हमारी राष्ट्रीय चेतना में एक ऐसा घाव है, जिसे समझने के लिए हमें केवल बाहरी आक्रमण को ही नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक कमजोरियों को भी गहराई से देखना होगा। अक्सर हम मानते हैं कि अंग्रेज शक्तिशाली थे, लेकिन क्या यही एकमात्र कारण था? क्या हमारी अपनी कुछ गलतियों ने उन्हें यहाँ स्थापित होने का मौका नहीं दिया?
यह लेख केवल इतिहास का पुनर्पाठ नहीं है, बल्कि एक आत्म-मंथन है। हम समझेंगे कि 18वीं सदी में भारत की क्या स्थिति थी, वे कौन से कारण थे जिन्होंने हमें गुलामी की ओर धकेला, और सबसे महत्वपूर्ण – क्या आज भी हम अनजाने में उन्हीं राहों पर चल रहे हैं, जिनका परिणाम इतिहास दोहरा सकता है?

अतीत का आईना: हम कहाँ चूके?
राजनीतिक बिखराव: “फूट डालो और राज करो”
जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में कदम रखा, तब यह एक शक्तिशाली, एकीकृत राष्ट्र नहीं था। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य पतन की ओर था। इसके अवशेषों पर कई छोटे-छोटे राज्य और रियासतें उभर रही थीं – मराठे, सिख, अवध, मैसूर और बंगाल के नवाब। इन सभी शक्तियों की अपनी महत्वाकांक्षाएँ थीं और वे आपस में लगातार लड़ रही थीं।
अंग्रेजों ने इस स्थिति का भरपूर फायदा उठाया। उन्होंने सीधे युद्ध करने की बजाय, एक-दूसरे के खिलाफ भड़काने की नीति अपनाई। 1757 में प्लासी का युद्ध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को उन्हीं के सेनापति मीर जाफर के धोखे से हराया, जिससे भारत में उनके राजनीतिक शासन की नींव रखी गई। राजनीतिक एकता का अभाव हमारी सबसे बड़ी कमजोरी थी, जिसने एक बाहरी व्यापारिक कंपनी को हमारी धरती का मालिक बनने का मौका दिया।
संदर्भ के लिए: प्लासी के युद्ध के बारे में अधिक जानने के लिए आप यह लेख पढ़ सकते हैं: Battle of Plassey, The turning point of British rule in India
सैन्य और तकनीकी पिछड़ापन
भारतीय शासकों की सेनाएँ संख्या में बड़ी थीं, लेकिन अंग्रेजों की आधुनिक सैन्य तकनीक और रणनीति के सामने वे टिक नहीं पाईं। जहाँ भारतीय सेनाएँ परंपरागत हथियारों, हाथी और घुड़सवारों पर निर्भर थीं, वहीं अंग्रेजों के पास आधुनिक तोपें, बेहतर बंदूकें और एक अनुशासित, प्रशिक्षित सेना थी। उनकी नौसेना भी बहुत मजबूत थी, जिसने उन्हें समुद्री मार्गों पर पूर्ण नियंत्रण दिया। इसके अलावा, ब्रिटिश सैनिकों को नियमित वेतन मिलता था, जिससे वे अपने राजा के प्रति अधिक वफादार होते थे, जबकि भारतीय सेनाएँ अक्सर जागीरदारी व्यवस्था पर आधारित थीं, जहाँ निष्ठा व्यक्तिगत संबंधों पर टिकी होती थी।
आर्थिक शोषण और व्यापारिक नीतियां
शुरुआत में ईस्ट इंडिया कंपनी का उद्देश्य व्यापार करना था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारत को कच्चे माल का आपूर्तिकर्ता और अपने बने-बनाए सामानों का बाजार बना दिया। उन्होंने भारत के समृद्ध कपड़ा उद्योग और हस्तशिल्प को नष्ट कर दिया। भारतीय कारीगरों पर भारी कर लगाए गए, जबकि ब्रिटेन से आने वाले सामानों पर कोई कर नहीं था। इससे भारतीय उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो गए और भारत की आर्थिक रीढ़ टूट गई।
संदर्भ के लिए: ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के आर्थिक शोषण पर दादाभाई नौरोजी के “Drain of Wealth” सिद्धांत के बारे में जानें: Dadabhai Naoroji’s Drain Theory
एक गहरा और अनदेखा पहलू: सैन्यीकरण मानसिकता का अभाव
इतिहास के इन कारणों के अलावा, एक और गहरा कारण है जिसकी अक्सर उपेक्षा की जाती है: बहुसंख्यक भारतीय समाज में सैन्यीकरण मानसिकता का अभाव। इसका मतलब यह नहीं था कि भारतीय लोग बहादुर नहीं थे, बल्कि इसका अर्थ यह था कि राष्ट्र की रक्षा को एक सामूहिक जिम्मेदारी के रूप में नहीं देखा गया।
ऐतिहासिक जड़ें:
प्राचीन और मध्यकालीन भारत में, समाज को वर्ण व्यवस्था में विभाजित किया गया था। युद्ध करना और राष्ट्र की रक्षा करना मुख्य रूप से क्षत्रिय वर्ग का कर्तव्य माना जाता था। बाकी समाज, जैसे ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र, अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थे और उन्हें युद्ध से दूर रखा जाता था। इसके अलावा, अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित बौद्ध और जैन धर्मों का प्रभाव भी समाज के एक बड़े हिस्से पर था।
परिणाम:
इस मानसिकता का परिणाम यह हुआ कि जब भी किसी राजा पर विदेशी आक्रमण होता था, तो प्रतिरोध की जिम्मेदारी केवल उसकी सेना और क्षत्रिय वर्ग की होती थी। आम जनता इस संघर्ष में सीधे तौर पर शामिल नहीं होती थी। उनका मानना था कि यह राजा का काम है, हमारा नहीं। अंग्रेजों जैसे आक्रमणकारियों के लिए यह स्थिति वरदान साबित हुई, क्योंकि उन्हें पूरे देश की जनता के प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा, बल्कि केवल कुछ राजाओं और उनकी सेनाओं से ही लड़ना पड़ा। जब एक राजा हार जाता था, तो उसकी प्रजा आसानी से नए शासक को स्वीकार कर लेती थी।
यह एक बड़ा अंतर है अगर इसकी तुलना हम चीन या रूस जैसे देशों से करें, जहाँ राष्ट्र की रक्षा एक नागरिक कर्तव्य माना जाता है। अगर हर भारतीय नागरिक में यह भावना होती कि “यह मेरा देश है और इसकी रक्षा मेरा कर्तव्य है”, तो शायद अंग्रेजों को यहाँ पैर जमाने का मौका नहीं मिलता।

क्या आज भी वैसी ही गलतियाँ हो रही हैं?
यह सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है। इतिहास हमें बताता है कि अगर हम अपनी कमजोरियों को नहीं सुधारते, तो उनका परिणाम फिर से वैसा ही हो सकता है। आज के समय में, हम कई ऐसी चुनौतियाँ देख रहे हैं, जो हमारी पुरानी गलतियों की याद दिलाती हैं:
राजनीतिक और सामाजिक ध्रुवीकरण: 18वीं सदी में रियासतें आपस में लड़ती थीं, आज हम धर्म, जाति, भाषा और राजनीति के नाम पर आपस में बँट रहे हैं। यह सामाजिक एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। यह ध्रुवीकरण बाहरी शक्तियों के लिए हमारी आंतरिक स्थिरता को कमजोर करने का सबसे आसान हथियार है।
आर्थिक असमानता और बाह्य प्रभाव: आज भी भारत में आर्थिक असमानता एक बड़ी चुनौती है। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई लगातार बढ़ रही है। इसके साथ-साथ, वैश्वीकरण के इस दौर में, विदेशी शक्तियों और बहुराष्ट्रीय निगमों का हमारे देश की आर्थिक नीतियों पर प्रभाव पड़ सकता है। यह एक नए तरह के “आर्थिक उपनिवेशवाद” का रूप ले सकता है, अगर हम सतर्क न रहें।
राष्ट्र-भावना और नागरिक जिम्मेदारी का अभाव: आज भी, “सैन्यीकरण मानसिकता” (राष्ट्र के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी) का अभाव कुछ हद तक दिखता है। हम अक्सर अपने अधिकारों की बात करते हैं, लेकिन अपने कर्तव्यों और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को भूल जाते हैं। साइबर हमले, गलत सूचनाओं का प्रसार और पर्यावरण की रक्षा जैसे मुद्दों पर एक सामूहिक नागरिक चेतना की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: एक नई सुबह की ओर
भारत का अंग्रेजों का गुलाम बनना कोई एक दिन की घटना नहीं थी। यह एक लंबी प्रक्रिया का परिणाम था, जिसमें अंग्रेजों की कुटिल नीतियाँ और हमारी अपनी आंतरिक कमजोरियाँ – राजनीतिक बिखराव, तकनीकी पिछड़ापन, और सैन्यीकरण मानसिकता का अभाव – दोनों ही जिम्मेदार थीं।
इतिहास हमें एक अनमोल सबक सिखाता है: एक राष्ट्र केवल तब तक सुरक्षित है जब तक उसकी जनता एकीकृत, जागरूक और जिम्मेदार है। आज हमें एक ऐसे भारत का निर्माण करना होगा, जहाँ सभी नागरिक एक-दूसरे का सम्मान करें, मिलकर देश की प्रगति के लिए काम करें, और राष्ट्र की सुरक्षा को एक सामूहिक जिम्मेदारी समझें। तभी हम यह सुनिश्चित कर पाएंगे कि इतिहास की वो गलतियाँ दोबारा न दोहराई जाएं।