AI युग में May Day की महत्ता: श्रमिक अधिकार

हर वर्ष 1 मई को ‘मजदूर दिवस’ या ‘May Day’ मनाया जाता है, जो श्रमिकों के अधिकारों और उनके योगदान को सम्मानित करने का दिन है। AI युग में May Day – हम Artificial Intelligence (AI ) के युग में प्रवेश कर रहे हैं, यह समय नई चुनौतियों और अवसरों का प्रतीक बनता जा रहा है। इस लेख में हम May Day के पारंपरिक महत्व से लेकर AI युग में इसके नए संदर्भों तक का विश्लेषण करेंगे।

🔹 May Day: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

May Day की शुरुआत 19वीं सदी के अंत में अमेरिका और यूरोप में श्रमिकों के संघर्ष से हुई थी। 1886 में शिकागो में हजारों मजदूरों ने 8 घंटे काम, 8 घंटे आराम और 8 घंटे व्यक्तिगत जीवन के सिद्धांत को लेकर आंदोलन किया, जो ‘हेमार्केट नरसंहार’ में परिवर्तित हुआ। 1889 में पेरिस में अंतरराष्ट्रीय मजदूर सम्मेलन में 1 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ घोषित किया गया। भारत में इसका पहला आयोजन 1923 में चेन्नई में हुआ था।

🔹 AI युग: परिभाषा और प्रभाव

AI यानी ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को सोचने, समझने, सीखने और निर्णय लेने की क्षमता देती है। यह तकनीक अब न केवल औद्योगिक उत्पादन में, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, ग्राहक सेवा और रचनात्मक क्षेत्रों में भी प्रवेश कर चुकी है।

रोज़गार पर प्रभाव:

World Economic Forum के अनुसार, 2025 तक AI और ऑटोमेशन के कारण 85 मिलियन पारंपरिक नौकरियाँ समाप्त हो सकती हैं, लेकिन साथ ही 97 मिलियन नई नौकरियाँ भी उत्पन्न होंगी, जो नई तकनीकी क्षमताओं की मांग करेंगी।

🔹 AI युग में May Day की नई प्रासंगिकता

1. रोज़गार का स्वरूप बदल रहा है, समाप्त नहीं हो रहा

AI ने कई दोहराव वाले कार्यों को स्वचालित बना दिया है, लेकिन इससे यह मान लेना गलत होगा कि इंसान की आवश्यकता समाप्त हो रही है। अब ज़रूरत ऐसे श्रमिकों की है जो तकनीक के साथ तालमेल बिठा सकें।

2. डिजिटल असमानता और डेटा अधिकार

AI युग में एक नया ‘डिजिटल श्रमिक वर्ग’ जन्म ले चुका है – जैसे फ्रीलांसर, डेटा लेबलर, कंटेंट मॉडरेटर आदि। इन्हें अक्सर न तो उचित वेतन मिलता है, न ही सामाजिक सुरक्षा। उदाहरण के लिए, OpenAI जैसे संगठनों के लिए डेटा तैयार करने वाले एशियाई देशों के कामगारों को बेहद कम पारिश्रमिक मिलता है, जबकि उनका योगदान AI मॉडल की नींव होता है।

3. नैतिक मानदण्डों की आवश्यकता

AI का विकास किस दिशा में हो, यह तय करना हमारी जिम्मेदारी है। May Day हमें इस बात पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है कि हम AI का उपयोग कैसे करें ताकि यह मानव कल्याण और सामाजिक प्रगति में योगदान दे, न कि शोषण और असमानता को बढ़ाए।

4. गिग इकॉनमी और एल्गोरिदमिक प्रबंधन

गिग इकॉनमी:

ओला, उबर, स्विगी जैसे प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा या निश्चित वेतन नहीं मिलता।

एल्गोरिदमिक प्रबंधन:

अमेज़न जैसी कंपनियाँ AI का उपयोग करके श्रमिकों के प्रदर्शन और समय की माइक्रो-मैनेजमेंट करती हैं, जिससे तनाव बढ़ता है।

5. नए संगठन और यूनियन का उभार

अब डिजिटल यूनियनों का भी निर्माण हो रहा है – जैसे कि ‘Gig Workers Collective’ या ‘Data & Society’ जैसी संस्थाएं, जो तकनीकी प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वालों के अधिकारों की बात करती हैं।

6. मानव-केंद्रित AI की मांग

AI के विकास में यह आवश्यक है कि वह मानव मूल्यों और सामाजिक न्याय के सिद्धांतों पर आधारित हो। इसका अर्थ है – पारदर्शिता, जवाबदेही, और श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करने के अवसर देना।

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🔹 अवसर: AI के साथ समावेशी विकास

AI केवल चुनौती नहीं, बल्कि समाधान भी हो सकता है:

नए रोजगार:

डेटा साइंटिस्ट, AI ट्रेनर, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ जैसे पदों की मांग बढ़ी है।

सुरक्षा में सुधार:

AI संचालित सेंसर खतरनाक मशीनों या वातावरण में श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

कुशलता में वृद्धि:

दोहराए जाने वाले कार्यों को AI संभाल सकता है, जिससे श्रमिक रचनात्मक और रणनीतिक कार्यों पर ध्यान दे सकते हैं।

🔹 केस स्टडी:

1. फॉक्सकॉन (चीन):

यह कंपनी iPhone असेंबल करती है। यहां AI और रोबोटिक्स के आने से हजारों मजदूरों को नौकरी से हटाया गया, लेकिन इसके बाद कंपनी को नए प्रशिक्षित इंजीनियरों की आवश्यकता पड़ी, जिससे एक नई कार्यबल तैयार हुई।

2. टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS):

भारत में TCS जैसे आईटी संस्थान अब अपने कर्मचारियों को AI और मशीन लर्निंग में प्रशिक्षण दे रहे हैं, जिससे पारंपरिक आईटी कर्मचारी भी डिजिटल युग में कदम से कदम मिला सकें।

🔹 सार्वभौमिक बुनियादी आय (UBI) की अवधारणा

नौकरियों के कम होने पर UBI की अवधारणा पर विचार करना आवश्यक है। फिनलैंड का UBI प्रयोग (2017-2018) से पता चला कि UBI ने लोगों की मानसिक सेहत और रोजगार की संभावनाएँ बढ़ाईं।

🔹 निष्कर्ष

AI युग में May Day केवल इतिहास का स्मरण नहीं, बल्कि भविष्य के लिए चेतावनी और प्रेरणा दोनों है। जहां एक ओर तकनीक नौकरियों के स्वरूप को बदल रही है, वहीं दूसरी ओर यह एक अवसर भी है – श्रमिकों को अधिक सशक्त, प्रशिक्षित और अधिकारसम्पन्न बनाने का।

प्रोफेसर अमिताभ कांत, जो एक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं, का मानना है कि “AI भारत के लिए एक बड़ा अवसर और चुनौती दोनों है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम इस तकनीक का उपयोग समावेशी विकास के लिए करें, जहाँ हर वर्ग के लोगों को इसका लाभ मिले।”

इसलिए, आज May Day मनाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक ज़िम्मेदारी है – यह सुनिश्चित करने की कि कोई भी तकनीक इंसान की गरिमा को पीछे न छोड़ दे।


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