मुंह के छाले आयुर्वेद से समाधान

**मुंह के छाले बार-बार होना – समस्या की पहचान और आयुर्वेदिक समाधान**

मुंह के छाले बार-बार होना एक सामान्य लेकिन परेशान करने वाली समस्या है। यह केवल एक लक्षण है, जो किसी गंभीर स्वास्थ्य समस्या का संकेत हो सकता है। आयुर्वेद में इसे ‘मुखपाक’ कहा जाता है, और इसका समाधान आयुर्वेदिक चिकित्सा के माध्यम से संभव है।

**समस्या की जड़ में है पेट की गर्मी** 

आमतौर पर, मुंह के छाले पेट की गर्मी का परिणाम होते हैं। आयुर्वेद में माना जाता है कि जब शरीर में पित्त दोष का असंतुलन होता है, तब यह समस्या उत्पन्न होती है। इसके लिए सबसे पहले आपको अपने लिवर की स्थिति का पता लगाना चाहिए। लिवर फंक्शन टेस्ट (रक्त जांच) कराएं और यदि कोई गड़बड़ी मिलती है, तो उसकी चिकित्सा पर ध्यान दें। आयुर्वेद में लिवर की चिकित्सा के लिए बेहतरीन उपचार उपलब्ध हैं, जो न केवल लक्षणों को नियंत्रित करते हैं बल्कि समस्या की जड़ तक पहुंचकर उसे ठीक करते हैं। घरेलू उपचार में अमरुद के कोमल पत्ते चबाकर थूक देना। एक चिकित्सा जो सभी उम्र के लोग ले सकते, एलोपैथी के साथ भी चल सकती – मुलेठी चूर्ण पानी में उबाल, छान कर इस पानी (काढे) को गुनगुना ही मुंह में लेकर गुङगुङाना फिर उगल देना। न कोई जांच जरूरी न कोई हानि। लाभ होगा भले सिर्फ तात्कालिक रूप से ही हो।


**उम्र के अनुसार चिकित्सा का महत्व** 

यदि लिवर के उपचार के बाद भी छाले नहीं जा रहे हैं, तो आगे की चिकित्सा उम्र के अनुसार तय होती है। 
– **18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए**: त्रिकटु चूर्ण एक उपयुक्त विकल्प हो सकता है। यह तीन प्रमुख मसालों – काली मिर्च, सौंठ, और पिप्पली का मिश्रण है, जो पाचन को सुधरता है और पेट की गर्मी को नियंत्रित करता है।
– **18 से 60 साल के वयस्कों के लिए**: इस आयु वर्ग के लिए अविपत्तिकर चूर्ण और टंकण भस्म का प्रयोग कारगर होता है। अविपत्तिकर चूर्ण पेट के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है, जो एसिडिटी और पित्त दोष को नियंत्रित करता है। खास कर एसिडिटी की वजह से डकारें आना – बन्द होगा फिर जङ से ठीक।
– **60 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के लिए**: इस उम्र में शरीर की क्षमता कम हो जाती है, इसलिए आजमोदादि चूर्ण और टंकण भस्म का प्रयोग किया जाता है। यह चूर्ण पेट को आराम प्रदान करता है और पाचन शक्ति को बेहतर करता है। टंकण भस्म आंतों के अन्दरुनी सतह पर जमे पुराने मैल को साफ करके मल के साथ बाहर करता है। यह पुरानी गन्दगी कई समस्याओं को जन्म देती है जिनमें से एक यह भी है।

यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि सही खुराक और उपयोग की जानकारी किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक द्वारा ही दी जानी चाहिए, क्योंकि हर व्यक्ति की शारीरिक संरचना और समस्या अलग होती है।


**अगर समस्या फिर भी बनी रहती है** 

कई बार उचित लिवर और पाचन उपचार के बाद भी मुंह के छाले की समस्या बनी रह सकती है। ऐसी स्थिति में पेट का अल्ट्रासाउंड कराना जरूरी हो जाता है। यह जांच आंतरिक अंगों की स्थिति का पता लगाने में मदद कर सकती है। यदि कोई अन्य समस्या निकलती है, तो उसके अनुसार चिकित्सा ली जा सकती है। वैसे अपने दिनचर्या पर भी ध्यान दें। आयुर्वेदिक चिकित्सा में दिनचर्य सही करके रोग ठीक करना तथा पुनः न होने देना यह सब का पूरा विधान है ।

**आयुर्वेद अपनाएं, निरोग रहें** 

आयुर्वेदिक उपचार न केवल आपकी शारीरिक समस्याओं को हल करता है, बल्कि आपको पूरी तरह से स्वस्थ बनाता है। मुंह के छालों का बार-बार होना आपके शरीर में असंतुलन का संकेत है, जिसे आयुर्वेद के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है। इसलिए आयुर्वेद को अपनाएं और निरोगी जीवन का आनंद लें।

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