सितारे जमीन पर रिव्यू: Neurodivergent अनुभवों की संवेदनशील प्रस्तुति

कहानी और थीम
‘सितारे जमीन पर’ आमिर खान की एक दिल छू लेने वाली फिल्म है, जो neurodivergent वयस्कों और बच्चों के जीवन को केंद्र में रखती है। फिल्म की कहानी एक बास्केटबॉल कोच (आमिर खान) के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे कोर्ट के आदेश पर neurodivergent खिलाड़ियों की टीम को ट्रेन करना पड़ता है। यह कोच खुद अपनी जिंदगी में परेशानियों से जूझ रहा है, लेकिन इन खिलाड़ियों के साथ उसका सफर उसकी सोच और जीवन को बदल देता है। फिल्म की टैगलाइन—’सबका अपना-अपना नॉर्मल होता है’—पूरी कहानी का सार है, जो यह बताती है कि neurodivergence कोई बीमारी नहीं, बल्कि इंसानी विविधता का हिस्सा है।

Neurodivergence की प्रस्तुति
फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि इसकी ईमानदार और संवेदनशील neurodivergence की प्रस्तुति है। इसमें 10 असली neurodivergent कलाकारों (ज्यादातर डाउन सिंड्रोम से प्रभावित) को लिया गया है, जिनकी मासूमियत, जिजीविषा और इंसानियत दर्शकों को गहराई से छूती है। फिल्म यह स्पष्ट करती है कि neurodivergence कोई medical case नहीं है—यह दिमाग की एक अलग wiring है, जो इंसान को अलग तरह से सोचने, महसूस करने और दुनिया को देखने की ताकत देती है। फिल्म बार-बार यह संदेश देती है कि जिन्हें समाज ‘अबनॉर्मल’ कहता है, वे भी अपनी जगह पर उतने ही सामान्य हैं, जितने बाकी लोग।

फिल्म का सामाजिक संदेश
‘सितारे जमीन पर’ सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज के नजरिए को बदलने की कोशिश है। यह दिखाती है कि neurodivergent लोगों को ‘fix’ या ‘ठीक’ करने की जरूरत नहीं, बल्कि उन्हें समझने, अपनाने और बराबरी का मौका देने की जरूरत है। फिल्म में दिखाया गया है कि जब neurodivergent लोगों को सही माहौल, प्यार और समर्थन मिलता है, तो वे भी असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं। यह movie हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि असली abnormality हमारे नजरिए में है, न कि neurodivergent लोगों में।

कहानी का प्रवाह और निर्देशन
फिल्म का पहला हिस्सा थोड़ा धीमा है, जिसमें किरदारों की पृष्ठभूमि और टीम की असफलताओं को दिखाया गया है। इंटरवल के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ती है, भावनाओं और हास्य का संतुलन बनाती है, और दर्शकों को बांधे रखती है। निर्देशक आर.एस. प्रसन्ना ने विषय की गंभीरता को melodrama या उपदेशात्मकता में नहीं बदलने दिया। उन्होंने हास्य और मानवीय जुड़ाव के जरिए समाज के पूर्वाग्रहों और भेदभाव को तोड़ने की कोशिश की है।

अभिनय और कास्टिंग
आमिर खान ने अपने किरदार में गहराई और संवेदना दिखाई है। उनका ट्रांसफॉर्मेशन—एक गुस्सैल, खुद में उलझे इंसान से लेकर संवेदनशील कोच बनने तक—बहुत प्रभावशाली है। जेनेलिया देशमुख और अन्य सह-कलाकारों ने भी अपने किरदारों को ईमानदारी से निभाया है, लेकिन फिल्म की असली जान neurodivergent कलाकार ही हैं, जिनकी उपस्थिति फिल्म को खास बनाती है।

मूल फिल्म से तुलना और भारतीयकरण
यह फिल्म स्पैनिश फिल्म ‘चैंपियंस’ की आधिकारिक रीमेक है, लेकिन लेखिका दिव्या निधि शर्मा ने इसकी स्क्रिप्ट का भारतीयकरण बहुत बारीकी और संवेदना के साथ किया है। भारतीय समाज में neurodivergence को लेकर जो भ्रांतियां और सामाजिक चुनौतियां हैं, उन्हें फिल्म ने सटीक तरीके से दिखाया है।

संगीत, तकनीकी पक्ष और कमजोरियां
फिल्म के गाने हल्के-फुल्के और कहानी के प्रवाह में फिट बैठते हैं। एडिटिंग में कहीं-कहीं कसावट की कमी महसूस होती है, खासकर पहले हिस्से में। लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म गति पकड़ती है और क्लाइमेक्स तक आते-आते दर्शकों को भावनाओं के साथ जोड़ लेती है।

कमाई और लोकप्रियता
फिल्म ने शुरुआती दिनों में अच्छी कमाई की है, लेकिन इसकी असली सफलता इसकी संवेदनशीलता और सामाजिक संदेश में है, न कि बॉक्स ऑफिस नंबरों में।

निष्कर्ष
‘सितारे जमीन पर’ एक ऐसी फिल्म है, जो neurodivergent लोगों को medical case नहीं, बल्कि इंसानी विविधता के रूप में देखती है। यह movie दर्शकों को हंसाती, रुलाती और सोचने पर मजबूर करती है। आमिर खान और पूरी टीम ने साबित किया है कि सिनेमा समाज को बदलने का माध्यम हो सकता है। फिल्म का सबसे बड़ा संदेश यही है—हर किसी का अपना-अपना नॉर्मल होता है, और neurodivergence को अपनाना, समझना और celebrate करना चाहिए।


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