हेमोफीलिया – आयुर्वेद की दृष्टि से रक्तस्राव विकारों की समझ
हर वर्ष 17 अप्रैल को पूरी दुनिया में विश्व हेमोफीलिया दिवस (World Hemophilia Day) मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य है लोगों को हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्राव संबंधी विकारों के बारे में जागरूक करना, ताकि समाज में पीड़ितों को न केवल पहचान और इलाज मिल सके, बल्कि वे सम्मानजनक जीवन भी जी सकें।
हेमोफीलिया एक अनुवांशिक रक्तस्राव विकार है, जिसमें शरीर में खून का थक्का बनने की प्रक्रिया सामान्य नहीं होती। यदि किसी व्यक्ति को चोट लग जाए, तो खून बंद होने में काफी समय लगता है।
हेमोफीलिया के मुख्य प्रकार
- हेमोफीलिया A: फैक्टर VIII की कमी
- हेमोफीलिया B: फैक्टर IX की कमी
- यह विकार मुख्य रूप से पुरुषों को प्रभावित करता है, जबकि महिलाएं इसके वाहक होती हैं। इसके कारण आंतरिक रक्तस्राव, जोड़ों में दर्द, सूजन और विकृति जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
विश्व हेमोफीलिया दिवस की पृष्ठभूमि
इस दिवस की शुरुआत 1998 में World Federation of Hemophilia द्वारा की गई थी। यह दिवस Frank Schnabel की जयंती पर मनाया जाता है, जिन्होंने जीवनभर इस रोग के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया।
2025 की थीम:
“Equitable Access for All: Recognizing All Bleeding Disorders”
इसका उद्देश्य है कि केवल हेमोफीलिया ही नहीं, बल्कि सभी रक्तस्राव विकारों के लिए सुलभ और समान उपचार मिले।
भारत में स्थिति
भारत में अनुमानित रूप से 50,000+ लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, परंतु केवल 20,000 के आसपास ही पंजीकृत हैं। अधिकांश मामलों में समय पर पहचान नहीं हो पाती, जिससे जीवन संकट में पड़ सकता है।
हेमोफीलिया मरीज के जीवन की एक झलक – मुजफ्फरपुर की उमस भरी हवा रोहन पर एक शारीरिक बोझ की तरह छाई हुई थी। उसने बाहर धूल भरी गली में क्रिकेट खेलते अन्य लड़कों को देखा, उनकी चीखें और हँसी एक दूर की, मोहक धुन जैसी लग रही थी। एक तेज दर्द, पीड़ा का नहीं बल्कि लालसा का, उसके पेट में मरोड़ पैदा कर गया। वह बारह साल का था, लेकिन उसकी दुनिया उनसे कहीं छोटी थी, जो अनदेखे के लगातार, सर्द डर से घिरी हुई थी।
रोहन को हीमोफीलिया था। यह एक ऐसा शब्द था जो उसके बचपन से ही उसके जीवन में अंकित हो गया था, एक ऐसा शब्द जिसका मतलब था कि एक साधारण सी चोट एक बुरे सपने में बदल सकती है, एक छोटा सा कट एक संकट बन सकता है। उसकी माँ, गंगा देवी, एक ऐसी महिला जिसके चेहरे पर स्थायी चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं, उसकी अथक अभिभावक थी। हर खरोंच, हर चोट, दिल दहला देने वाली साँस और गतिविधियों की हड़बड़ाहट के साथ मिलती थी – बर्फ के पैक, कंप्रेशन पट्टियाँ, और हमेशा, बिना कही प्रार्थना कि यह बढ़ेगा नहीं।
अभी पिछले हफ्ते ही, रसोई की मेज से एक हानिरहित टक्कर के कारण उसकी जांघ में गहरे मांसपेशी में रक्तस्राव हो गया था। दर्द असहनीय था, एक सुस्त, धड़कता हुआ दर्द जो उसकी पूरी टांग में फैल गया था। कई दिनों तक, वह अपनी खाट तक ही सीमित रहा, उसकी टांग सूजी हुई और रंगहीन थी, उसका वजन थोड़ा सा भी बदलना एक यातना थी। स्थानीय डॉक्टर, एक दयालु लेकिन सीमित ज्ञान वाला व्यक्ति, जो कुछ कर सकता था, उसने किया, लेकिन विशेष फैक्टर VIII इंजेक्शन, एकमात्र सच्चा इलाज, एक विलासिता थी जिसे उनकी मामूली आय अक्सर वहन नहीं कर पाती थी। उसके पिता, एक दिहाड़ी मजदूर, अथक परिश्रम करते थे, लेकिन रोहन की दवा की लागत एक लगातार नाली थी, जो अक्सर उन्हें उसके इलाज और अन्य आवश्यकताओं के बीच चुनाव करने के लिए मजबूर करती थी।
रोहन ने सोचा कि सबसे बुरा, केवल शारीरिक दर्द नहीं था, बल्कि वह अदृश्य जेल थी जिसे इसने उसके चारों ओर बना दिया था। वह दौड़ नहीं सकता था, कूद नहीं सकता था, अपने दोस्तों के साथ कुश्ती नहीं लड़ सकता था। स्कूल लगातार चिंता का एक स्रोत था; एक भटकती हुई कोहनी, गलियारे में एक टक्कर, उसे पीड़ा में धकेल सकती थी। उसे वह शर्म याद थी जब एक विशेष रूप से खराब नकसीर के बाद उसकी पैंट क्लास में खून से भीग गई थी, उसके सहपाठियों की फुसफुसाहट, उनका अजीब बचाव।
एक शाम, मानसून के मौसम में, बिजली गुल होने से उनका छोटा सा घर अंधेरे में डूब गया। जैसे ही उसकी माँ ने एक अकेला तेल का दीपक जलाया, जिससे दीवारों पर नाचती हुई परछाइयाँ पड़ रही थीं, रोहन ने अपने माता-पिता के बीच एक फुसफुसाहट भरी बातचीत सुनी। उसके पिता की आवाज, जो आमतौर पर इतनी स्थिर होती थी, निराशा से भरी थी। “गंगा, पैसे… बस पर्याप्त नहीं हैं। हमें अगली अस्पताल यात्रा के लिए बचाना होगा।” उसकी माँ का जवाब एक रुँधी हुई सिसकी थी। “मुझे पता है, लेकिन हम और क्या कर सकते हैं? वह हमारा बेटा है।”
रोहन ने अपनी आँखें बंद कर लीं, उनके बोझ का वजन उसके युवा कंधों पर आ पड़ा। वह एक बोझ था, चिंता और खर्च का एक निरंतर स्रोत। वह अपने माता-पिता से बहुत प्यार करता था, और उन्हें इतना दुख पहुँचाने का विचार किसी भी रक्तस्राव से गहरा दर्द था।
अगले दिन, जैसे ही सूरज लगातार चमक रहा था, रोहन ने अपनी माँ को पानी की बाल्टी ले जाने में मदद करने की कोशिश की। वह ठोकर खा गया, और हालांकि वह गिरने से पहले खुद को संभाल लिया, उसके टखने में एक तेज, परिचित दर्द हुआ। उसने नीचे देखा तो एक छोटा सा नीला निशान बन रहा था, जो पहले से ही गहरा हो रहा था। उसकी माँ उसकी तरफ भागी, उसका चेहरा पीला पड़ गया था।
<span;>”क्या तुम ठीक हो, बेटा?” उसने फुसफुसाते हुए कहा, उसकी आवाज़ काँप रही थी।
रोहन ने सिर हिलाया, एक बहादुर मुस्कान के लिए मजबूर किया, लेकिन अंदर ही अंदर, निराशा की एक परिचित लहर उसे घेर गई। बाहर क्रिकेट का खेल फिर से शुरू हो गया था, उमस भरी हवा में खुशी की आवाज़ें गूँज रही थीं। वह उन्हें देखता रहा, एक शांत, अकेला व्यक्ति, यह जानते हुए कि उसके लिए, जीवन का खेल एक अलग, अधिक खतरनाक नियमों के साथ खेला जाता था। और सबसे बड़ी पीड़ा, उसने महसूस किया, सिर्फ दर्द नहीं थी, बल्कि इस बात का लगातार, परेशान करने वाला डर था कि कल क्या लाएगा।
आयुर्वेद की दृष्टि से हेमोफीलिया
आयुर्वेद में इस प्रकार के विकारों को “रक्तपित्त”, “रक्तदोष”, अथवा “रक्तक्षय” जैसे नामों से जाना जाता है। किसी भी रक्तस्राव समबन्धित रोग में वसाका पत्ते का काढा लाभदायी होता है। बाजार में वासावलेह उपलब्ध है, सेवन लाभलायी है।
संभावित कारण:
- पित्त की अधिकता – त्रिफला पित्त दोष को शांत करता है। पित्त को शांत करने के लिए एक और प्रभावी जड़ी बूटी शतावरी है। पित्त को कम करने के लिए एक विशेष मसाला इलायची है।
- यकृत की दुर्बलता – अंगूर तथा चुकन्दर का सेवन यकृत (Liver) को बल देता है। शास्त्रीय औषधियों में कामलाहर क्वाथ चूर्ण (ताजा काढा बना कर सेवन), ताप्यादि लौह वटी रजतयुक्त, यकृदरी लौह वटी।
- शरीर में गर्मी बढ़ना – आमलकी रसायन तथा आमलकी चूर्ण या अखण्ड, चन्दन शर्बत, प्रवाल पिष्टी।
- रक्त संचार की अव्यवस्था – त्रिफला गुग्गुल काफी कारगर है।
- अनुवांशिक प्रवृत्ति और विषैली आदतें – जहर मोहरा खताई शरीर से विष का निष्कासन करता है।
आयुर्वेदिक उपचार विधियाँ:
- शीतल और रक्तशोधक औषधियाँ: मुक्ताशुक्ति भस्म, प्रवाल पिष्टी, गिलोय, शतावरी, नागकेशर, लोध्र, आमलकी चूर्ण
- पंचकर्म: रक्तमोक्षण, शिरोविरेचन आदि
- पथ्य आहार: नारियल पानी, बेल शरबत, दूध, मूंग की दाल, आँवला; वर्जित: तीखे, तले पदार्थ
- योग और प्राणायाम: अनुलोम-विलोम, शीतली, शीतकारी, सुप्त बद्धकोणासन
महत्वपूर्ण चेतावनी:
हेमोफीलिया एक गंभीर आनुवांशिक रोग है, अतः एलोपैथिक फैक्टर रिप्लेसमेंट थेरेपी आवश्यक है। आयुर्वेदिक चिकित्सा केवल सहायक रूप में अपनाई जानी चाहिए और वह भी योग्य वैद्य से सलाह लेकर।
हमारा संकल्प
विश्व हेमोफीलिया दिवस हमें यह स्मरण कराता है कि जब रक्त जैसे अमूल्य तत्त्व में असंतुलन होता है, तो पूरा जीवन प्रभावित हो सकता है। आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ आयुर्वेदिक संतुलन से इस रोग के विरुद्ध प्रभावी लड़ाई संभव है।
आइए, हम सब मिलकर यह संकल्प लें:
- समाज में जागरूकता बढ़ाएँ – कई NGO इस पर काम करते हैं। उनका अपने परिचित मरीज से सम्पर्क करायें।
- हेमोफीलिया पीड़ितों के प्रति सहानुभूति रखें – इस रोग पर काम करने वाले किसी NGO को अपना समय दें।
- आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा का संतुलन अपनाएँ – सिम्पटम्स रिलीफ में आयुर्वेद काफी कारगर है, सुरक्षित भी।
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