आज से यहां प्रतिदिन नाड़ी परीक्षा आयुर्वेद पर अपने विद्यार्थी काल के नोटबुक के एक-एक पृष्ठ का फोटो डालूंगा। ये एक-दूसरे से सम्बद्ध होंगे। क्रमशः एक-एक पृष्ठ का संक्षिप्त ज्ञान होगा, ऐसे कि आम लोग भी समझ सकें। नीचे एक संक्षिप्त आलेख प्रस्तुत है।
जय धन्वंतरी !
**आयुर्वेद में नाड़ी परीक्षा : स्वास्थ्य का प्राचीन विज्ञान**
### **नाड़ी परीक्षा क्या है?**
आयुर्वेद में नाड़ी परीक्षा एक ऐसी पद्धति है जिसमें केवल नाड़ी (नब्ज) की गति, गहराई, और लय को जांचकर व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक स्वास्थ्य का आकलन किया जाता है। यह विज्ञान 5000 साल से अधिक पुराना माना जाता है और चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। नाड़ी को “शरीर का दर्पण” कहा जाता है, क्योंकि यह शरीर के अंदर की सूक्ष्म ऊर्जाओं (दोषों) और रोगों के संकेतों को प्रकट करती है।
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### **त्रिदोष और नाड़ी का संबंध**
आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर **वात, पित्त, और कफ** इन तीन दोषों के संतुलन पर चलता है। नाड़ी परीक्षा में इन्हीं दोषों की स्थिति का पता लगाया जाता है:
1. **वात दोष**: यदि नाड़ी तेज, अनियमित, और सर्प की तरह रेंगती हुई महसूस हो, तो यह वात प्रधान शरीर का संकेत है या आप वातरोग से ग्रस्त हैं। वात असंतुलन से पेट की समस्याएं, जोड़ों का दर्द, या चिंता हो सकती है।
2. **पित्त दोष**: तेज, मजबूत, और मेंढक की छलांग जैसी नाड़ी पित्त असंतुलन दर्शाती है। इससे त्वचा रोग, एसिडिटी, या गुस्से की समस्या हो सकती है।
3. **कफ दोष**: धीमी, स्थिर, और हंस की गति वाली नाड़ी कफ प्रधानता की ओर इशारा करती है। इसके असंतुलन से मोटापा, सर्दी-जुकाम, या आलस्य हो सकता है।
नाड़ी परीक्षा में वैद्य केवल दोषों का ही नहीं, बल्कि **धातुओं** (रस, रक्त, मांस आदि) और **मल** (विषाक्त पदार्थों) की स्थिति भी जानते हैं।
### **नाड़ी परीक्षा कैसे की जाती है?**
1. **समय और स्थिति**: सुबह खाली पेट, शांत वातावरण में यह परीक्षा की जाती है। रोगी को बैठकर या लेटकर अपना बायाँ हाथ आगे बढ़ाना होता है。
2. **नाड़ी स्थान**: वैद्य तर्जनी, मध्यमा, और अनामिका उंगलियों को रोगी की कलाई के नीचे (अंगूठे के पास) रखते हैं। प्रत्येक उंगली एक दोष से जुड़ी होती है:
– तर्जनी → वात
– मध्यमा → पित्त
– अनामिका → कफ
3. **गहराई से विश्लेषण**: नाड़ी की गति, दबाव, तापमान, और लय के आधार पर वैद्य रोग की जड़ तक पहुँचते हैं। उदाहरण के लिए, यदि नाड़ी “सर्प गति” (टेढ़ी) है, तो यह वात दोष और पाचन समस्याओं का संकेत है。
### **नाड़ी परीक्षा के लाभ**
1. **रोगों की पूर्वसूचना**: यह पद्धति रोग के लक्षण प्रकट होने से पहले ही उसकी पहचान कर लेती है。
2. **व्यक्तिगत उपचार**: दोषों के अनुसार आहार, जीवनशैली, और औषधियों का सुझाव दिया जाता है।
3. **दवाओं से मुक्ति**: अधिकांश मामलों में केवल प्राकृतिक चिकित्सा (जैसे योग, आहार परिवर्तन) से इलाज संभव है।
4. **मानसिक स्वास्थ्य**: नाड़ी परीक्षा से तनाव, अवसाद, और नींद की समस्याओं का भी पता चलता है।
### **आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता**
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास समय की कमी है। लेकिन नाड़ी परीक्षा केवल 10-15 मिनट में ही स्वास्थ्य का सटीक चित्र प्रस्तुत कर देती है। यह डायबिटीज, हाई बीपी, माइग्रेन जैसे रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। कई शोध भी साबित कर चुके हैं कि नाड़ी की गति और हृदय रोगों के बीच गहरा संबंध है।
### **सामान्य जन के लिए सुझाव**
– प्रातःकाल नाड़ी परीक्षा करवाना सर्वोत्तम है। प्रैक्टिकल कारणों से यह सम्भव न हो तो वैद्य के पास खाली पेट ही जायें। उपवासकाल में तो और बेहतर परीक्षण परिणाम मिलते हैं।
– परीक्षा से पहले 2 घंटे तक भोजन या चाय न लें।
आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 1


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 2

आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 3


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 4


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 5


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 6


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 7


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 8


आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षण – 9



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