च्यवनप्राश: आयुर्वेद का अद्वितीय रसायन

च्यवनप्राश भारतीय परंपरा का एक ऐसा अमृततुल्य रसायन है, जिसे आयुर्वेद में स्वस्थ जीवन और दीर्घायु के लिए सदियों से उपयोग किया जा रहा है। जब यह सारंगधर संहिता के शास्त्रीय सूत्र के अनुसार तैयार किया जाता है, तो इसकी गुणवत्ता और प्रभावशीलता अद्वितीय हो जाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह विशेष च्यवनप्राश (केशर, अष्टवर्ग युक्त) किस प्रकार आपके स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकता है।

Table of Contents

च्यवनप्राश का इतिहास और महत्व

च्यवनप्राश का नाम प्राचीन ऋषि च्यवन के नाम पर रखा गया है। ऐसा कहा जाता है कि च्यवन ऋषि ने इसका प्रयोग अपनी खोई हुई ऊर्जा और जवानी को पुनः प्राप्त करने के लिए किया था। सारंगधर संहिता, आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध ग्रंथ, इस रसायन की निर्माण विधि और गुणों का विस्तृत विवरण देता है।

च्यवनप्राश की प्रमुख विशेषताएँ

1. अमृतफल (आंवला) का उपयोग

आंवला च्यवनप्राश का मुख्य घटक है। इसमें विटामिन C भरपूर मात्रा में होता है, जो इम्यूनिटी बढ़ाने और शरीर को डीटॉक्स करने में मदद करता है।


2. अष्टवर्ग के जड़ी-बूटियाँ

अष्टवर्ग की दुर्लभ जड़ी-बूटियाँ जैसे काकोली, क्षीरकाकोली, जीवक, मेदा, महामेदा, ऋषभक, ऋद्धि, और वृद्धि  इसे एक विशेष रसायन बनाती हैं। अष्टवर्ग औषधि में एनाल्जेसिक और सूजनरोधी गुण होते हैं।

3. सात्विक तत्वों का उपयोग

सारंगधर संहिता में वर्णित शुद्ध घी, शहद, और तिल का तेल जैसे सात्विक तत्वों का उपयोग इसे और भी पौष्टिक बनाता है।

4. स्पेशल मसाले और औषधियाँ

केशर, पिप्पली, दालचीनी, इलायची, और वंशलोचन जैसे घटक पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं और च्यवनप्राश के स्वाद को बढ़ाते हैं।

च्यवनप्राश के लाभ:

1. इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक

इस च्यवनप्राश में प्रयुक्त आंवला और अष्टवर्ग की जड़ी-बूटियाँ शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं।

2. एंटी-एजिंग गुण

सारंगधर संहिता के अनुसार, च्यवनप्राश का नियमित सेवन बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करता है और त्वचा को चमकदार बनाता है।

3. ऊर्जा और स्फूर्ति का स्रोत

इसमें मौजूद जड़ी-बूटियाँ और घी शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं, जिससे आप दिनभर ऊर्जावान महसूस करते हैं।

4. पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है

पिप्पली और दालचीनी जैसे मसाले पाचन में सुधार करते हैं और गैस्ट्रिक समस्याओं को दूर करते हैं।

5. शरीर के अंगों को पोषण

यह मस्तिष्क, हृदय, और फेफड़ों जैसे महत्वपूर्ण अंगों को पोषण देकर उनकी कार्यक्षमता बढ़ाता है।

हमारा च्यवनप्राश: विशेष क्यों?

1. सारंगधर संहिता के अनुसार तैयारी

हमारा च्यवनप्राश पूरी तरह से प्राचीन शास्त्रीय विधि का पालन करता है। हर घटक को शुद्ध और प्राकृतिक रूप में उपयोग किया जाता है।

2. हैंडमेड प्रक्रिया

यह च्यवनप्राश मशीनों से नहीं बल्कि पारंपरिक विधि से हाथों से बनाया जाता है, जो इसकी शुद्धता और प्रभावशीलता को बनाए रखता है।

3. संरक्षण मुक्त (Preservative-Free)

इसमें कोई कृत्रिम रसायन या प्रिजर्वेटिव्स नहीं मिलाए जाते।

4. पारंपरिक घटकों का संतुलन

हम सुनिश्चित करते हैं कि हर घटक उचित मात्रा में हो, जैसा कि सारंगधर संहिता में वर्णित है।

कैसे करें सेवन?

हम इसे अपने ग्राहकों को सुझाव देते हैं:

रोज़ाना सुबह खाली पेट और रात को सोने से पहले एक चम्मच दूध के साथ लें।

बच्चों और बुजुर्गों के लिए आधी मात्रा उपयुक्त है।

हमारा वादा

यदि आप शुद्ध, पारंपरिक, और प्रभावशाली च्यवनप्राश की खोज में हैं, तो हमारा सारंगधर संहिता आधारित च्यवनप्राश आपकी खोज का अंत है। इसे आज़माएं और अपने जीवन में स्वास्थ्य और ऊर्जा का अनुभव करें।

अष्टवर्ग के विकल्प (प्रक्षेप द्रव्य)

आज के समय में अष्टवर्ग के मूल घटक दुर्लभ हो गए हैं और अधिकांश रूप से अनुपलब्ध हैं। इसके स्थान पर आयुर्वेद में उनके समान गुणों वाले प्रक्षेप द्रव्य का उपयोग किया जाता है। ये विकल्प न केवल प्रभावी हैं, बल्कि च्यवनप्राश जैसी रसायन औषधियों की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक हैं। वैसे सच्चाई यह भी है कि वैद्यगण ये आठों कहीं न कहीं से आज भी ले आते हैं, अपने बनाये वाले में डालते हैं। अष्टवर्ग के इन मूल घटकों के विकल्प आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार चुने गए हैं, जो उनकी औषधीय विशेषताओं से मेल खाते हैं। एक नजर इस विषय पर भी। नीचे अष्टवर्ग और उनके वर्तमान में उपयोग किए जा रहे विकल्पों का विवरण दिया गया है:

1. शतावरी और महाशतावरी :

ऋद्धि और काकोली के समान पोषण और ऊर्जा प्रदान करने वाले।

2. अश्वगंधा और सफेद मूसली:

वृद्धि और ऋषभक जैसे बलवर्धक और अनुकूलनकारी।

3. विदारीकंद:

जीवक के समान ऊर्जावर्धक और ठंडक प्रदान करने वाला।

4. ब्राह्मी और शंखपुष्पी:

मेधा और महामेधा के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने वाले गुण।

5. जीवंती:

क्षीरकाकोली के समान पुनर्जीवन और प्रतिरक्षा प्रदान करने वाला।

आयुर्वेदिक फार्माकोपिया द्वारा इन विकल्पों को मान्यता दी गई है।

जय आयुर्वेद !


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *