आज जब पूरी दुनिया 22 अप्रैल को अंतर्राष्ट्रीय पृथ्वी दिवस के रूप में मना रही है, तब यह सवाल उठता है – क्या हम सचमुच अपनी धरती की देखभाल कर रहे हैं? और क्या आयुर्वेद इस दिशा में कोई मार्गदर्शन करता है? याद रखें – पृथ्वी हमारा शरीर है।

पृथ्वी दिवस का इतिहास और उद्देश्य
• वर्ष 1970 में अमेरिका में पहली बार पृथ्वी दिवस मनाया गया।
• उद्देश्य था: प्रदूषण, पर्यावरण विनाश, वनों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन के प्रति जनजागरूकता।
• आज यह दिन 190+ देशों में मनाया जाता है।

धरती और मानव शरीर – आयुर्वेद की दृष्टि से
आयुर्वेद के अनुसार, मानव शरीर पंचमहाभूतों – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश – से बना है।
इसी तरह, हमारी पृथ्वी भी इन्हीं तत्वों का भंडार है।
यदि हम पृथ्वी को नष्ट करेंगे, तो शरीर भी स्वस्थ नहीं रह सकता। और यदि शरीर दूषित है, तो पृथ्वी भी अशुद्ध होती है।
आयुर्वेद और पर्यावरण – एक गहरा संबंध
• आयुर्वेदिक पौधों का घर या आसपास में रोपण करें।
• पॉलिथीन और रसायनों से बने उत्पादों का उपयोग बंद करें।
• प्रकृति के अनुरूप दिनचर्या (दिनचर्या-चरक संहिता) अपनाएँ।
• नैसर्गिक चिकित्सा और देशज उपचारों को प्राथमिकता दें।
आयुर्वेदिक चिकित्सा = पृथ्वी की चिकित्सा
जब आप आयुर्वेदिक दवाओं का उपयोग करते हैं, जो प्राकृतिक स्रोतों से बनी होती हैं, तो आप न केवल अपने शरीर को बल्कि पृथ्वी को भी कृत्रिम रसायनों से बचाते हैं।
आयुर्वेदिक उपचार = पारिस्थितिक संतुलन
एलोपैथिक दवाएँ = पर्यावरणीय अपशिष्ट
हमारी भूमिका – एक जिम्मेदार वैद्य और नागरिक के रूप में
AjitAyurved.in के माध्यम से हमारा प्रयास है कि आपके स्वास्थ्य और प्रकृति – दोनों का संतुलन बनाए रखें।
हमारे द्वारा निर्मित हैंडमेड आयुर्वेदिक औषधियाँ पूर्णतः प्राकृतिक हैं और किसी भी प्रकार का पारिस्थितिक हानि नहीं करतीं।

समापन: चलिए मिलकर करें धरती और शरीर का संरक्षण
22 अप्रैल को केवल एक दिवस के रूप में न मनाएं, बल्कि इसे एक आंदोलन बनाएं।
“जब धरती स्वस्थ, तभी जीवन व्यस्थित।”
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