जीवन में कई बार हम ऐसे स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं, जो सामान्य चिकित्सा पद्धतियों से ठीक नहीं हो पातीं। इन्हीं में से एक है सोरायसिस, जिसे एक असाध्य चर्म रोग माना जाता है। यह स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब बड़े से बड़े एलोपैथिक डॉक्टर यह कह देते हैं कि इस रोग का इलाज संभव नहीं है। ऐसे में अगर आपको त्वचा पर विशेष लक्षण दिख रहे हैं, तो यह संकेत हो सकता है कि आपको विचर्चिका या सोरायसिस है।
**सोरायसिस के लक्षण:**
सोरायसिस के लक्षणों की बात करें तो यह रोग सबसे पहले जोड़ों में दर्द के रूप में प्रकट होता है। इस चर्मरोग में त्वचा पर चकत्ते, छोटे मस्से, त्वचा की परत उतरना, दरारें पड़ना, पपड़ी बनना, मोटाई आना, लालपन या शुष्कता जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। इसके अलावा अवसाद, खुजली, जलन, सूजन, और जोड़ों की अकड़न भी आम हैं। नाखूनों में छोटे गड्ढे बनना भी इस रोग का एक अन्य प्रमुख लक्षण है।

**लिवर की भूमिका और जांच:**
आमतौर पर सोरायसिस के रोगियों में लिवर की स्थिति को लेकर चिंता बनी रहती है। इस रोग में लिवर की समस्या काफी हद तक बढ़ सकती है, इसलिए सबसे पहले *Liver Function Test* और *Ultrasound* कराना आवश्यक है। *Ultrasound* से यह भी पता चलता है कि कहीं आपको *Fatty Liver* की समस्या तो नहीं है। अगर कोई समस्या सामने आती है, तो उसकी आयुर्वेदिक चिकित्सा अवश्य लें। आयुर्वेद में लिवर की समस्याओं के उपचार के लिए बहुत ही प्रभावी उपाय हैं, जिनके माध्यम से लिवर को स्वस्थ बनाया जा सकता है।
**आयुर्वेदिक उपचार:**
सोरायसिस का आयुर्वेदिक उपचार बहुत ही कारगर माना जाता है। आयुर्वेद में इस चर्मरोग के लिए कुछ विशिष्ट औषधियों का प्रयोग होता है जो बेहद प्रभावी हैं। इनमें *महामंजिष्ठादि क्वाथ*, *कैशोर गुग्गुल*, *आरोग्य वर्धनी वटी*, *अमृता सत्व (गिलोय)* प्रमुख हैं। इसके अलावा, एक विशेष आयुर्वेदिक योग *सर्वकुष्ठनाशक योग* भी है, जिसे गिलोय सत्व के साथ मिश्रित करके लिया जाता है। इन औषधियों का नियमित सेवन और कुछ आहार-परहेज के साथ लगभग छह महीनों में त्वचा सामान्य हो सकती है।
**आहार और परहेज:**
सोरायसिस के रोगियों के लिए आहार पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। सफेद चीजों जैसे भात (लाल चावल का प्रयोग करें), साधारण नमक (सेंधा नमक का सेवन करें), चीनी, मूली, दूध, दही, पनीर आदि से परहेज करें। इसके अलावा, बन्धागोभी का कच्चा रस पीना भी लाभकारी हो सकता है। आयुर्वेद के अनुसार, सोरायसिस के रोगियों को साबुन का प्रयोग बंद कर देना चाहिए और स्नान में बेसन का प्रयोग करना चाहिए। यह त्वचा के लिए अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है और रोग को बढ़ने से रोकता है।
**आयुर्वेद और जीवनशैली:**
आयुर्वेदिक उपचार के साथ-साथ जीवनशैली में भी कुछ बदलाव आवश्यक होते हैं। सोरायसिस के रोगियों को तनाव कम करने, नियमित योग और प्राणायाम का अभ्यास करने की सलाह दी जाती है। स्वस्थ जीवनशैली अपनाने से न केवल सोरायसिस को नियंत्रित किया जा सकता है, बल्कि अन्य चर्म रोगों से भी बचाव हो सकता है। आजकल इंटरनेट पर कई स्रोत उपलब्ध हैं जो सोरायसिस के आयुर्वेदिक उपचार और जीवनशैली में बदलाव के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करते हैं।
सोरायसिस जैसे चर्म रोग का इलाज आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से संभव है, लेकिन इसके लिए धैर्य और नियमितता की आवश्यकता होती है। यदि आप इस रोग से पीड़ित हैं तो विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह के साथ आयुर्वेदिक उपचार अपनाएं और अपनी जीवनशैली में उचित बदलाव करें। आयुर्वेद की इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति में आपके स्वास्थ्य को पुनः स्वस्थ बनाने की शक्ति है।
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