साइनस का आयुर्वेदिक इलाज क्या है?
साइनस को दुष्ट प्रतिश्याय भी कहा जाता है। साइनस हवा से भरी छोटी-छोटी खोखली गुहा रूपी संरचनाएं हैं जो नाक के आसपास वाले हिस्से, गाल या माथे की हड्डी के पीछे एवं आंखों के बीच वाले हिस्से में पैदा होने लगती हैं। बार-बार सर्दी-जुकाम होना, सिरदर्द, भारीपन, नींद की समस्या, पाचनतन्त्र की समस्या – यह सब होता है इसमें।
इसमें वमन कर्म (सिर्फ हल्का गर्म पानी में थोङा नमक मिला कर या औषधियों से उल्टी करवाने की विधि), नास्य कर्म (नासिक मार्ग से औषधि डालना) और विरेचन कर्म (मल निष्कासन की विधि) शामिल है।
यदि कठिन स्थिति हो तब आरम्भ करते स्नेहन, स्वेदन, वमन से। इनके द्वारा साइनस से अतिरिक्त एवं खराब कफ को ढीला करके उसे पेट में लाया जाता है। शरीर पर सही तेल लगाना – स्नेहन। पसीना निकालना – स्वेदन। मैं तो कहता, 5 – 10 किलोमीटर रोज तेज गति से चलें, पसीना भी आयेगा अन्य लाभ भी मिलेंगे। भाप-स्नान भी ले सकते, थोङा खर्च आयेगा। इसके बाद वमन कर्म द्वारा कफयुक्त गन्दगी को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है और इस तरह साइनोसाइटिस के लक्षणों से राहत मिलती है। कैसे करें वमन ? सुबह एक-दो लीटर सुशुम पानी में थोङा नमक मिला कर पीयें फिर तुरंत मुंह में दो ऊंगली डाल कर उल्टी करके वह पानी तथा गन्दगी बाहर। इनमें से जितना हो, करें फिर दवाओं की बारी।
त्रिकटु, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी, हरिद्राखण्ड, ब्योषादि वटी, महातिक्त घृत, चित्रकादि वटी, त्रिभुवनकीर्ति रस – कुछ आयुर्वेदिक औषधियां।
मुलेठी, वसाका, तुलसीपत्र, काली जीरी, बहेङा – कुछ जरीबूटियां जिनसे परिस्थिति अनुसार दवायें बनती हैं।

Leave a Reply