विधि : आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सामंजस्य स्थापित करने के उपाय**
वैद्यों का झगङा-निपटारा तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जब तक कि वे दोनों पक्ष के त्रिदोष—वात, पित्त, कफ—की प्रकृति और विकृति को समझकर नहीं चलते। महर्षि सुश्रुत के अनुसार, सही स्वास्थ्य की परिभाषा केवल शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा, इन्द्रियों और मन की प्रसन्नता भी इसमें शामिल है। यह दृष्टिकोण न केवल व्यक्ति के शारीरिक संतुलन को बनाए रखने पर केंद्रित है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन भी इसमें शामिल है। तो प्रसन्नता स्थापित करना ध्येय है जो झगङे के कारण अस्थिर हो गया है।

**झगड़े का समाधान: त्रिदोष का संतुलन**
जब भी कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो सबसे पहले यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने शरीर और मस्तिष्क को समझे और खुद को शांत करे। इसके बाद, जिनसे आपका विवाद हो रहा है, उनके मनो-शारीरिक (mind-body) प्रकार को समझने का प्रयास करें। यह समझना महत्वपूर्ण है कि दोनों के वर्तमान त्रिदोष की स्थिति क्या है और कैसे इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए आगे का कदम उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति का वात दोष असंतुलित है, तो वह अत्यधिक चिंतित और अप्रत्याशित हो सकता है। इस स्थिति में, शांत और स्थिरता की आवश्यकता होती है ताकि विवाद को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाया जा सके। झगङे का वजह तो अपना हित साधना ही होता है, यह कैसे संतुलित ढंग से हो जिससे प्रसन्नता बनी रहे – यही विधि खोजना लक्ष्य है।
आयुर्वेद का ज्ञान केवल व्यक्ति के स्वास्थ्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र के स्वास्थ्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यदि नेतागण भी आयुर्वेद के आधारभूत सिद्धांतों का पालन करें, तो समाज में सामंजस्य और शांति को बढ़ावा दिया जा सकता है।
**रिश्तों में सामंजस्य: त्रिदोष के आधार पर**
दोष—वात, पित्त, कफ—के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव और प्रवृत्तियों को समझना बहुत ही लाभकारी हो सकता है। इससे आप यह जान सकते हैं कि आपके और दूसरे व्यक्ति के बीच सामंजस्य कैसे स्थापित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वात दोष प्रधान व्यक्ति अत्यधिक परिवर्तनशील और अप्रत्याशित हो सकता है, जबकि पित्त दोष प्रधान व्यक्ति अनुशासन और व्यवस्था की अपेक्षा करता है। वहीं कफ दोष प्रधान व्यक्ति स्वभाव से स्थिर और शांत होता है।
इस प्रकार के ज्ञान का उपयोग करके आप यह निर्णय ले सकते हैं कि किस प्रकार की प्रवृत्तियों को स्वीकार करना और किस प्रकार से अनुकूलन करना आवश्यक है। झगड़े की स्थिति में, सबसे पहले वर्तमान त्रिदोष के संतुलन को समझना चाहिए और फिर निर्णय लेना चाहिए कि सही समाधान क्या है।
**झगड़े का निपटारा: आयुर्वेदिक उपाय**
झगड़े का समाधान साम, दाम, दण्ड, भेद, माया, अवज्ञा, इन्द्रजाल जैसे तरीकों से किया जा सकता है। सही समाधान के लिए यह महत्वपूर्ण है कि दोनों पक्षों के त्रिदोष को समझकर ही कोई उपाय सुझाया जाए। यदि विवाद को सुलझाने के लिए दूसरे पक्ष को सुनने की इच्छा है, तो उन्हें उनकी विकृति के बारे में बता कर सही चिकित्सा-निर्देश दिए जा सकते हैं।
आयुर्वेद में यही सिखाया जाता है कि केवल शारीरिक स्वास्थ्य का नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक सामंजस्य का भी ध्यान रखना आवश्यक है। वैद्यों को उनके गुरुओं द्वारा यही सिखाया जाता है कि झगड़े से निपटने के लिए त्रिदोष को समझना और उनके अनुसार उपाय करना ही सही मार्ग है।
इस प्रकार, वैद्यों का झगड़ा-निपटारा एक अत्यधिक संवेदनशील और विचारशील प्रक्रिया है, जिसमें केवल शारीरिक दोषों को ही नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन को भी ध्यान में रखा जाता है।
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