वीर सावरकर, ब्रिटिश आर्मी में भर्ती और स्वतंत्रता संग्राम: एक गहन विश्लेषण

आज 28 मई को हम महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर (विनायक दामोदर सावरकर) की जयंती मनाते हैं। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को लेकर हमेशा से ही गहन चर्चा और विविध दृष्टिकोण रहे हैं। मेरा मत – न ख्याति की लालसा, न पद का प्रलोभन, न मृत्यु या जीवन के कष्टों का डर। उन्हें बस मां भारती को आजाद देखने की उत्कट अभिलाषा थी, जिस भी राह से यह मिले।

उनके जीवन का एक पहलू जिस पर अक्सर बात होती है, वह है ब्रिटिश भारतीय सेना में देशभक्तों की गुप्त भर्ती और उन्हें विद्रोह के लिए तैयार करने की उनकी कथित भूमिका। क्या यह सच था कि सावरकर ने सैनिकों के कान में आज़ादी का मंत्र फूंका? क्या द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों के भारत छोड़ने में इस रणनीति का कोई हाथ था? आइए, इन सवालों की गहराई में उतरें।

सावरकर का दृष्टिकोण: ‘सैन्यीकरण आंदोलन’

वीर सावरकर एक दूरदर्शी विचारक थे जिन्होंने अखंड भारत और हिंदुत्व की अवधारणा को प्रतिपादित किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, हिंदू महासभा (जिसके अध्यक्ष सावरकर थे) ने ‘सैन्यीकरण आंदोलन’ का आह्वान किया।

सावरकर का तर्क था: भारतीयों को ब्रिटिश सेना में बड़ी संख्या में शामिल होना चाहिए। इससे दोहरे फायदे होंगे:

  • सैन्य प्रशिक्षण: आधुनिक युद्ध कौशल सीखने का अवसर
  • गुप्त विद्रोह की संभावना: समय आने पर अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह

सावरकर ने खुले तौर पर कहा: “अंग्रेजों को युद्ध में सहयोग करके सैन्य शक्ति हासिल करनी चाहिए, ताकि भविष्य में उसी शक्ति का उपयोग स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए किया जा सके।”

दस्तावेजी प्रमाणों की पड़ताल

सावरकर ने ब्रिटिश इंडियन आर्मी में कैंप लगा-लगा कर बहुत सारे देशभक्तों को भर्ती कराया और उनके कान में विद्रोह का मंत्र फूंका, इसके सीधे और अकाट्य दस्तावेजी प्रमाण ऐतिहासिक रिकॉर्ड में व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।

खुले भर्ती अभियान:

  • हिंदू महासभा ने खुले तौर पर सेना में भर्ती को प्रोत्साहित किया
  • मदुरा (1940) और भागलपुर (1941) के अधिवेशनों में स्पष्ट आह्वान
  • ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ ने सार्वजनिक रूप से आभार व्यक्त किया

गुप्त मंत्र और विद्रोह के प्रमाण:

* गुप्त मंत्र और विद्रोह का प्रमाण: सैनिकों को व्यक्तिगत रूप से गुप्त रूप से विद्रोह के लिए तैयार करने या उन्हें इस आशय का कोई गुप्त मंत्र देने के संबंध में कोई ठोस समकालीन दस्तावेज (जैसे ब्रिटिश खुफिया रिपोर्ट, भारतीय सेना के अभिलेख, या विद्रोह में शामिल सैनिकों के व्यक्तिगत संस्मरण) नहीं मिलते हैं जो सीधे तौर पर सावरकर को इस गतिविधि से जोड़ते हों।
यह संभव है कि सावरकर के अनुयायियों और उनके विचारों से प्रभावित कुछ व्यक्तियों ने अनौपचारिक रूप से या व्यक्तिगत स्तर पर सैनिकों के बीच इस विचार को फैलाया हो, लेकिन इसे एक संगठित, व्यापक और सावरकर द्वारा निर्देशित ‘गुप्त भर्ती अभियान’ के रूप में साबित करने के लिए ठोस प्रमाणों का अभाव है।

इतिहास में ऐसे कोई प्रमाण नहीं मिलते जो सावरकर को सीधे तौर पर इससे जोड़ते हों:

  • ब्रिटिश खुफिया रिपोर्ट्स में ऐसी जानकारी का अभाव
  • सैनिकों के संस्मरणों में ऐसे संदर्भ नहीं
  • ब्रिटिश अभिलेखों में कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं

1946 का नौसैनिक विद्रोह: क्या था संबंध?

1946 का नौसैनिक विद्रोह से पहले ब्रिटिश इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) सावरकर और हिंदू महासभा पर कड़ी नजर रख रहा था। उनकी रिपोर्ट्स (जो भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार में उपलब्ध हैं) यह दर्शाती हैं कि ब्रिटिशों को सावरकर की रणनीति के संभावित खतरे का एहसास था। रिपोर्ट्स में चिंता व्यक्त की गई थी कि सावरकर द्वारा भर्ती किए गए राष्ट्रवादी सैनिक भविष्य में “अविश्वसनीय” साबित हो सकते हैं। उन्हें आशंका थी कि सैन्य प्रशिक्षण प्राप्त भारतीयों का यह समूह भविष्य में विद्रोह का नेतृत्व कर सकता है। हालांकि, ये रिपोर्ट्स ब्रिटिशों की आशंकाओं को दर्शाती हैं, न कि सावरकर द्वारा दिए गए किसी विशिष्ट “विद्रोह के मंत्र” या सक्रिय साजिश का प्रत्यक्ष प्रमाण।

ब्रिटिशों के भारत छोड़ने के प्रमुख कारण:

  • युद्ध की थकान और आर्थिक दबाव
  • अंतर्राष्ट्रीय उपनिवेश-विरोधी दबाव
  • भारतीय राष्ट्रवाद का बढ़ता ज्वार
  • 1946 के नौसैनिक विद्रोह का प्रभाव

सावरकर कनेक्शन पर तथ्य:

  • विद्रोह के दौरान “सावरकर की जय!” के नारे लगे (कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार)
  • ब्रिटिश एडमिरल जे.एच. गोडफ्रे ने “राष्ट्रवादी भावना के प्रसार” को कारण माना
  • परंतु विद्रोह के प्रमुख कारण थे: भेदभाव, खराब वेतन और स्वतंत्रता की आकांक्षा

निष्कर्ष: एक जटिल विरासत

सावरकर निश्चित रूप से एक दूरदर्शी रणनीतिकार थे। परंतु ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं:

  • सैन्य भर्ती अभियान ➜ तथ्य
  • गुप्त विद्रोह की योजना ➜ अप्रमाणित
  • अंग्रेजों की वापसी का एकमात्र कारण ➜ मिथक

सावरकर की विरासत बहुआयामी है। उनका ‘सैन्यीकरण’ विचार भारतीय सैन्य चेतना को प्रभावित कर सकता था, परंतु इसका कोई प्रत्यक्ष संगठित विद्रोह से संबंध प्रमाणित नहीं है।

प्रमुख बिंदु (संक्षेप में)

  • सावरकर का भर्ती अभियान ➜ ऐतिहासिक तथ्य
  • गुप्त विद्रोह योजना ➜ दस्तावेजी प्रमाण अभाव
  • 1946 विद्रोह ➜ बहुआयामी कारणों से प्रेरित
  • ब्रिटिश वापसी ➜ जटिल कारकों का परिणाम

पाठकों के लिए संदेश

इतिहास को प्रमाण और संदर्भ से समझें। सावरकर की भूमिका को न अतिशय महिमामंडित करें, न ही एकतरफा आलोचना। उनकी रणनीति, विचारधारा और ऐतिहासिक परिस्थितियों को संतुलित दृष्टि से देखना ही उचित है।


Comments

8 responses to “वीर सावरकर, ब्रिटिश आर्मी में भर्ती और स्वतंत्रता संग्राम: एक गहन विश्लेषण”

  1. Koti koti naman 🙏

  2. Rana pratap mandal Avatar
    Rana pratap mandal

    हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा ‘हिन्दुत्व’ को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार भी थे। उन्होंने परिवर्तित हिन्दुओं के हिन्दू धर्म को वापस लौटाने के लिए सतत प्रयत्नशील रहे एवं इसके लिए आन्दोलन चलाए । उन्होंने भारत की एक सामूहिक “हिन्दू” पहचान बनाने के लिए हिन्दुत्व का शब्द दिए

  3. कुल मिलाकर उनके (सावरकर जी)द्वारा किए गए कार्यों को उनको नजरंदाज किया गया
    और रही बात ब्रिटिश शासन की तो सावरकर जी को , कि ये रणनीति तैयार कर रहे ब्रिटिश शासन के विरूद्ध ,तो वो लोग तथ्यों को उजागर कभी नही करेंगे

  4. Vindhyachal Tiwari Avatar
    Vindhyachal Tiwari

    जय श्री राम

  5. Ashish Juneja Avatar
    Ashish Juneja

    🙏

  6. Prakash Rout Avatar
    Prakash Rout

    Koti Naman 🙏🌹🚩✨💥

  7. Prakash Rout Avatar
    Prakash Rout

    Koti Naman 🙏🌹🚩✨💥 JAI VIR SAVARKAR 🇮🇳🙏💪👊🚩🚩

  8. Bashisht Raut Avatar
    Bashisht Raut

    British sena mea logo ko bharti krana or a kahna ki a log bidhroh karengea logical nhi hai.

    Hamne padha hai ki sawarkar ko British government pension DETI thea, humea pta hona chahiye ki koi kisi ko pension kyu deta hai.
    Estarah unkey Desh bhakti par question mark lagta hai

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