“रावणसंहिता एक प्राचीन ग्रंथ है जिसे महर्षि रावण की रचना माना जाता है। यह केवल ज्योतिष और तंत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आयुर्वेद के गूढ़ सिद्धांत, निदान एवं चिकित्सा पद्धतियाँ भी विस्तार से वर्णित हैं। यह ग्रंथ शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य के बीच की कड़ी को समझने पर बल देता है।
भाग 1: चिकित्सा-संबंधी श्लोक/मंत्र एवं उनके अर्थ
रावणसंहिता में अनेक श्लोक और मंत्र हैं जो विशिष्ट रोगों के निवारण के लिए दिए गए हैं। यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण दिए जा रहे हैं। ध्यान रहे, इनका प्रयोग किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
1. सर्वरोग निवारण हेतु मंत्र
मंत्र: ॐ नमो भगवते रुद्राय सर्वरोग विनाशनाय। सर्वदुःख हराय च, त्राहि मां शरणागतम्॥
अर्थ: “मैं उस भगवान रुद्र (शिव) को नमन करता हूँ, जो सभी रोगों का नाश करने वाले और सभी दुःखों को हरने वाले हैं। हे प्रभु, मैं शरण में आया हूँ, मेरी रक्षा करो।”
व्याख्या व प्रयोग: यह एक सामान्य स्वास्थ्य-वर्धक और रोग-निवारक मंत्र माना जाता है। इसके नियमित जप से मानसिक शांति मिलती है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायता मिलती है। इसे प्रातःकाल शुद्ध मन से ध्यान करते हुए जपा जा सकता है।

2. ज्वर (बुखार) के लिए मंत्रौषधि
मंत्र: ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ज्वराय फट् स्वाहा।
प्रयोग विधि: इस मंत्र के 108 बार जप द्वारा एक कलश के जल को अभिमंत्रित किया जाता है। फिर इस जल को रोगी को पिलाया जाता है या उसके सिर पर छिड़काव किया जाता है।
व्याख्या: यहाँ ‘मंत्रौषधि‘ का सिद्धांत कार्य करता है, जहाँ मंत्र की ध्वनि तरंगों का जल पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है और फिर वह जल रोगी के शरीर पर चिकित्सकीय प्रभाव डालता है। यह विधि मनोवैज्ञानिक और ऊर्जात्मक स्तर पर कार्य करती है।

3. मानसिक अशांति (भूतबाधा/उन्माद) के लिए उपचार
श्लोक (सारांश): “वचा, कुष्ठ, शताह्वा, हरेणु और देवदारु – इन जड़ी-बूटियों से बने धूप (धूनी) से भूतबाधा (मानसिक विकृति) का निश्चित रूप से नाश होता है।”
संबद्ध मंत्र (ध्यान के साथ): "ॐ नमो भगवते रुद्राय, पशुपतये, नमस्ते अस्तु भगवन विश्वेश्वराय, सर्वभूतभयनिवारणाय, त्र्यम्बकाय, त्रिपुरान्तकाय..."
मंत्र का अर्थ व प्रयोग: यह एक शक्तिशाली रुद्र मंत्र है, जिसका उल्लेख मानसिक अशांति को दूर करने के लिए किया गया है। इस मंत्र का जप करते हुए उपरोक्त जड़ी-बूटियों से धूप दिया जाता है। मान्यता है कि इससे वातावरण शुद्ध होता है और रोगी की चेतना पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
भाग 2: एक अनन्य औषधि: “रावण-भास्करावलेह”
पारंपरिक आयुर्वेद में ‘च्यवनप्राश’ प्रसिद्ध है, लेकिन रावणसंहिता में एक अद्वितीय औषधि का वर्णन मिलता है – रावण-भास्करावलेह। यह एक अवलेह (हर्बल जैम) है जिसे विशेष रूप से पाचन अग्नि को प्रज्वलित करने, शरीर में उष्णता (ताप) बनाए रखने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को अद्भुत स्तर तक बढ़ाने के लिए बनाया गया था।
मुख्य घटक:
- भास्कर लवण: एक विशेष प्रकार का औषधीय लवण जो पाचन को तुरंत प्रभावित करता है।
- शुंठी (सोंठ): सूखी अदरक।
- पिप्पली (लंबी काली मिर्च):
- मरीच (काली मिर्च):
- चव्य (पिप्पली मूल/चाब):
- चित्रक (प्लुम्बागो ज़ेलानिका): एक तीक्ष्ण पाचक जड़।
- विडंग (False Black Pepper):
- सौंफ:
- गुड़: योग को बांधने के लिए।
विशेषताएँ और प्रयोग:
आयुर्वेदिक सिद्धांत: यह औषधि मुख्य रूप से वात और कफ दोष को संतुलित करती है। इसकी तीक्ष्ण और उष्ण प्रकृति शरीर की अग्नि को भड़काती है।
मुख्य लाभ:
- मन्दाग्नि (भूख न लगना): भोजन से पहले इसका सेवन पाचन शक्ति को जगाता है।
- सर्दी-जुकाम और खाँसी: इसकी गर्म तासीर कफ को पिघलाकर बाहर निकालती है।
- शारीरिक दुर्बलता: यह एक बलवर्धक टॉनिक के रूप में कार्य करती है।
- आमावस्था (Toxins) का नाश: इसके तीक्ष्ण गुण शरीर के विषैले तत्वों को साफ करते हैं।
सावधानी:
इसकी तीक्ष्ण और उष्ण प्रकृति के कारण, पित्त प्रकृति के लोगों, पेप्टिक अल्सर या गंभीर निर्जलीकरण (Dehydration) से पीड़ित लोगों के लिए यह अनुकूल नहीं है। किसी योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह के बिना इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

निष्कर्ष: एक जीवंत परंपरा की ओर
रावणसंहिता में वर्णित ये श्लोक, मंत्र और अनन्य औषधियाँ इस बात का प्रमाण हैं कि आयुर्विज्ञान का दायरा हमारी सोच से कहीं अधिक विस्तृत और गहरा रहा है। यह केवल जड़ी-बूटियों का विज्ञान ही नहीं, बल्कि ध्वनि, मन और ऊर्जा के सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने वाली एक समग्र चिकित्सा पद्धति है। आज के वैज्ञानिक युग में, रावणसंहिता जैसे ग्रंथों में छिपे इस ज्ञान को सही संदर्भ में समझने, शोधने और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के साथ तारतम्य स्थापित करने की आवश्यकता है। यह हमें रोगों के मूल कारण तक पहुँचने और स्वास्थ्य के प्रति एक अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाने का मार्ग दिखा सकती है।