भारतीय संस्कृति में योग और मोक्ष दो ऐसे शब्द हैं, जो न केवल आध्यात्मिकता बल्कि जीवन के अंतिम उद्देश्य को भी दर्शाते हैं। योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक सम्पूर्ण जीवनशैली है, जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष—अर्थात् जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति और परमात्मा के साथ एकत्व—की प्राप्ति है। यह लेख इसी यात्रा की गहराई, प्रक्रिया और महत्व को सरल भाषा में स्पष्ट करेगा।

योग: अर्थ, उद्देश्य और स्वरूप
- योग का शाब्दिक अर्थ: ‘योग’ शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘जुड़ना’ या ‘समाधि’। पतंजलि के अनुसार, “चित्तवृत्तियों का निरोध ही योग है”।
- योग का उद्देश्य: योग का मुख्य उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से जोड़ना है। यह मनुष्य को न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रदान करता है, बल्कि उसे आत्मज्ञान और अंततः मोक्ष की ओर भी अग्रसर करता है।
- योग के प्रकार: योग के कई प्रकार हैं—राजयोग, हठयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग, भक्तियोग आदि। प्रत्येक का अंतिम लक्ष्य मोक्ष ही है।
मोक्ष: अवधारणा और महत्व
- मोक्ष क्या है? मोक्ष का अर्थ है—संसार के बंधनों, जन्म-मृत्यु के चक्र और त्रिविध दुखों (आध्यात्मिक, आधिभौतिक, आधिदैविक) से मुक्ति। यह आत्मा की परम शांति और स्वतंत्रता की अवस्था है।
- धर्मों में मोक्ष: हिन्दू, बौद्ध, जैन और सिख परंपराओं में मोक्ष को सर्वोच्च पुरुषार्थ माना गया है। बौद्ध धर्म में इसे ‘निर्वाण’, जैन धर्म में ‘कैवल्य’ कहा गया है।
योग से मोक्ष तक की यात्रा
1. अष्टांग योग: पतंजलि का मार्गदर्शन
- यम: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह—नैतिक अनुशासन।
- नियम: शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान—व्यक्तिगत अनुशासन।
- आसन: शरीर की स्थिरता और स्वास्थ्य के लिए।
- प्राणायाम: श्वास का नियंत्रण, जिससे प्राणशक्ति का जागरण होता है।
- प्रत्याहार: इंद्रियों को बाह्य विषयों से हटाकर अंतर्मुखी बनाना।
- धारणा: मन को एक बिंदु पर केंद्रित करना।
- ध्यान: निरंतर एकाग्रता।
- समाधि: ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय का भेद मिट जाना—यही मोक्ष की अवस्था है।
2. साधना और वैराग्य का महत्व
योग से मोक्ष की यात्रा में साधना, अनुशासन और वैराग्य अत्यंत आवश्यक हैं। केवल बाह्य रूप से योगासन या ध्यान करने से मोक्ष संभव नहीं, बल्कि मन, वचन और कर्म की शुद्धता भी जरूरी है। भोगों की नश्वरता को समझकर उनसे विरक्ति लाना, और गुरु के निर्देशानुसार साधना करना, आत्मज्ञान की ओर ले जाता है।
3. भक्ति, ज्ञान और कर्म का संतुलन
योग के मार्ग में भक्ति (ईश्वर में पूर्ण समर्पण), ज्ञान (आत्मा-परमात्मा का बोध) और कर्म (निष्काम सेवा) का संतुलन आवश्यक है। गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है—”योगः कर्मसु कौशलम्”—कर्म में कुशलता भी योग है।
आधुनिक संदर्भ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण
आज के समय में योग को प्रायः शारीरिक स्वास्थ्य तक सीमित कर दिया गया है, लेकिन इसका असली उद्देश्य आत्मा का परमात्मा से मिलन है। आधुनिक शोधों ने भी सिद्ध किया है कि योग न केवल मानसिक शांति देता है, बल्कि व्यक्ति को गहरे स्तर पर आत्मिक संतुलन और संतोष भी प्रदान करता है।

विशेषज्ञों की राय
- मीर्चा एलीयाडे के अनुसार, योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक प्रक्रिया है।
- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने समाधि की अवस्था को आनंद, विचार और अस्मिता के संयोग के रूप में बताया है।
निष्कर्ष
यह विषय भारतीय दर्शन का गहन विषय है। ग्रन्थ भङे पङे हैं इस पर प्राचीन से आधुनिक युग तक के लिखे। यह आलेख बस याद दिलाता है कि ऐसा भी होता है, मोक्ष कह कर भी कुछ होता है। योग से मोक्ष तक की यात्रा एक सहज, लेकिन अनुशासनपूर्ण प्रक्रिया है। यह केवल साधना या तपस्या नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षण में आत्म-चेतना और वैराग्य का भाव है। योग के अभ्यास से मनुष्य न केवल अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखता है, बल्कि आत्मा की शुद्धि और परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव भी करता है। यही मोक्ष की वास्तविक अनुभूति है—जहाँ न कोई बंधन है, न कोई भय, केवल शाश्वत शांति और आनंद। योग अपनाएँ, साधना करें और मोक्ष की ओर बढ़ें—यही जीवन का परम उद्देश्य है।
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