( आयुर्वेद दिवस 23 सितम्बर के उपलक्ष में वैद्य अजित करण के दस दिवसीय आयुर्वेदिक लेखमाला की दूसरी कड़ी – 15 सितम्बर दिन 2: मानसिक रोगी का सम्मान व सही निदान-चिकित्सा )
मानसिक स्वास्थ्य आयुर्वेद ( Mental Health Ayurved) : जो झेलते वे ही समझते, सही समाधान है आयुर्वेदिक चिकित्सा। मान लीजिए एक सुबह, आपकी एक मित्र आपसे मिलने आती है। वह हमेशा की तरह स्मार्ट और स्टाइलिश है, मगर आपकी नज़र उसकी आँखों में छुपे एक गहरे दर्द को पकड़ लेती है। वह मुस्कुरा तो रही है, मगर उस मुस्कान में वो चमक नहीं है। बातचीत के दौरान पता चलता है कि वह रात में ठीक से सो नहीं पाती, उसका मन किसी काम में नहीं लगता, और एक अनजाना डर हमेशा उसका पीछा करता है। वह कहती है, “डॉक्टर ने कहा है यह ‘अवसाद’ और ‘एंग्जाइटी’ है।

वह अंधेरा सुरंग जहाँ से आकाश गुजरा
आकाश (नाम बदला हुआ है), बेंगलुरु में एक प्रतिष्ठित IT कंपनी में काम करता था। बाहर से देखने पर उसका जीवन शानदार लगता था – अच्छी नौकरी, अच्छी सैलरी। लेकिन अंदर ही अंदर, लगातार बढ़ता काम का दबाव, प्रोजेक्ट की डेडलाइन्स, और शहर की अकेली जिंदगी उसे धीरे-धीरे खोखला कर रही थी।
लक्षण धीरे-धीरे शुरू हुए। रातों की नींद गायब होने लगी। छोटी-छोटी बातों पर चिड़चिड़ाहट और एक स्थायी थकान उस पर हावी हो गई। ऑफिस मीटिंग्स से पहले उसका दिल तेजी से धड़कने लगता, हाथों में पसीना आ जाता। धीरे-धीरे, उसने दोस्तों से मिलना-जुलना कम कर दिया। उसे लगता कि कोई उसकी परेशानी को नहीं समझेगा।
जब हालत बहुत ज्यादा बिगड़ गई, तो उसने एक मनोचिकित्सक से सलाह ली। उसे एंटी-डिप्रेसेंट और एंटी-एंग्जाइटी दवाएँ दी गईं। शुरुआत में, उसे लगा कि दवाओं से कुछ आराम मिल रहा है, लेकिन जल्द ही उसे उन दवाओं के साइड इफेक्ट्स ने परेशान करना शुरू कर दिया – सुस्ती, मुँह सूखना, और एक ऐसा अहसास जैसे वह भावनाओं से कट सा गया हो। वह दवाओं पर निर्भर तो हो गया, मगर ठीक नहीं हुआ।
आयुर्वेद का दृष्टिकोण: केवल लक्षण नहीं, जड़ तक जाना
निराश होकर, आकाश ने आयुर्वेदिक चिकित्सा का रुख किया। एक वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक से मिलने पर, उसे पहली बार लगा कि कोई उसकी समस्या की जड़ में जाकर देख रहा है। आयुर्वेद की दृष्टि में, मानसिक स्वास्थ्य शारीरिक स्वास्थ्य से अलग नहीं है।
आयुर्वेद के अनुसार, मन की शांति तीन दोषों – वात, पित्त, और कफ – के संतुलन पर निर्भर करती है। अवसाद और चिंता को मुख्य रूप से वात दोष के बिगड़ने से जोड़कर देखा जाता है। वात दोष गति, शुष्कता और अनिश्चितता का प्रतीक है। जब यह असंतुलित होता है, तो यह मन में भी उथल-पुथल, डर, अनिद्रा और अस्थिरता पैदा करता है।
डॉक्टर ने आकाश की नाड़ी देखी, उसके आहार और दिनचर्या के बारे में विस्तार से पूछा, और उसकी मानसिक स्थिति को समझा। निदान था – विषाद (अवसाद) और चित्तोद्वेग (चिंता), जिसकी जड़ असंतुलित वात दोष थी।
वह आयुर्वेदिक उपचार योजना जिसने बदल दी जिंदगी
- शोधन चिकित्सा (डिटॉक्सिफिकेशन): सबसे पहले, आकाश के शरीर और मन में जमा विषाक्त पदार्थों (अमा) को निकालना जरूरी था। इसके लिए उसे हल्के पंचकर्म therapies दी गईं, जैसे शिरोधारा। शिरोधारा में, लगातार 30-45 मिनट तक माथे पर गर्म हर्बल तेल की एक पतली धारा प्रवाहित की जाती है। यह प्रक्रिया अविश्वसनीय रूप से शांतिदायक है, तंत्रिका तंत्र को शांत करती है और गहरी विश्रांति देती है।
- शमन चिकित्सा (पैलिएशन थेरेपी): डिटॉक्स के बाद, उसे वात दोष को संतुलित करने वाली जड़ी-बूटियाँ दी गईं:
- ब्राह्मी (Bacopa Monnieri): यह मस्तिष्क के लिए एक प्रमुख टॉनिक है, जो स्मृति, एकाग्रता में सुधार करती है और तनाव को कम करती है। NCBI पर इसके शोध देखे जा सकते हैं
- अश्वगंधा (Withania Somnifera): इसे ‘भारतीय जिनसेंग’ कहा जाता है। यह शरीर को तनाव का सामना करने की शक्ति देती है, ऊर्जा बढ़ाती है और नींद में सुधार करती है।
- जटामांसी (Nardostachys Jatamansi): यह एक शक्तिशाली नर्वाइन टॉनिक है, जो अनिद्रा और चिंता को दूर करने में मददगार है।
- सर्पगंधा (Rauwolfia Serpentina): गंभीर चिंता और उच्च रक्तचाप के लिए प्रयोग की जाती है, लेकिन केवल चिकित्सक की देखरेख में।
- आहार में बदलाव (आहार-विहार): उसके आहार से ठंडे, सूखे और जंक फूड को हटाकर गर्म, पौष्टिक और वात शांत करने वाले खाद्य पदार्थ शामिल किए गए। जैसे गर्म दूध में हल्दी, घी, पके हुए मीठे फल, सूप, और दालें।
- जीवनशैली में बदलाव (दिनचर्या):
- प्रातः काल उठना और रात 10 बजे तक सोना।
- योग और प्राणायाम: भस्त्रिका प्राणायाम, अनुलोम-विलोम और सूर्य नमस्कार को दिनचर्या में शामिल किया गया।
- ध्यान (मेडिटेशन): रोजाना कम से कम 15 मिनट का ध्यान।
मानसिक स्वास्थ्य आयुर्वेद : परिणाम: अंधेरे से उजाले की ओर एक यात्रा
इस समग्र उपचार का असर तुरंत नहीं, बल्कि धीरे-धीरे और टिकाऊ हुआ। एक महीने के भीतर, आकाश की नींद में सुधार आना शुरू हो गया। दो महीने बाद, उसकी चिड़चिड़ाहट कम हुई और उसमें दोबारा काम करने की ऊर्जा आने लगी। धीरे-धीरे, उसने एलोपैथिक दवाओं की डोज कम कर दी (चिकित्सक की देखरेख में), और तीन महीने बाद वह पूरी तरह से दवाओं से मुक्त हो गया।
सबसे बड़ा बदलाव यह था कि उसे सिर्फ लक्षणों से आराम नहीं मिला, बल्कि उ बस जसने जीवन जीने का एक नया तरीका सीखा। उसे समझ आया कि स्वस्थ रहने के लिए सिर्फ दवा नहीं, बल्कि संतुलित आहार, नियमित दिनचर्या और मानसिक शांति जरूरी है।

निष्कर्ष: आयुर्वेद सिर्फ इलाज नहीं, एक जीवन पद्धति है
आकाश की कहानी कोई अपवाद नहीं है। कई आधुनिक शोध भी अश्वगंधा और ब्राह्मी जैसी जड़ी-बूटियों की प्रभावकारिता को साबित कर चुके हैं। आयुर्वेद मानसिक बीमारियों के प्रति एक अलग नजरिया प्रदान करता है। यह इसे सिर्फ ‘केमिकल इम्बैलेंस’ नहीं मानता, बल्कि जीवनशैली, आहार और विचारों के असंतुलन का परिणाम मानता है।
यह मरीज को एक पैसिव रिसीवर नहीं, बल्कि अपने स्वास्थ्य का सक्रिय भागीदार बनाता है। अगर आप या आपका कोई अपना मानसिक असंतुलन से जूझ रहा है, तो आयुर्वेदिक मार्गदर्शन लेना एक व्यवहारिक और प्रभावी विकल्प हो सकता है। याद रखिए, मानसिक स्वास्थ्य शर्म की बात नहीं है, और इसके लिए मदद माँगना साहस की निशानी है।
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स्रोत एवं अतिरिक्त पठन हेतु: