**आयुर्वेद में निद्रा का महत्व और उसकी आदर्श अवधि**

आयुर्वेद, जो कि भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति है, ने निद्रा को जीवन के तीन महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक माना है। स्वास्थ्य की दृष्टि से निद्रा का सही समय और उसकी गुणवत्ता अत्यधिक महत्वपूर्ण है। निद्रा के संबंध में आयुर्वेदिक ग्रंथों में विस्तार से चर्चा की गई है। एक श्लोक में कहा गया है:

*”निद्रा श्लेष्म् तमोभवा” – माधव निदानम्*

इसका अर्थ है कि निद्रा का मुख्य कारण कफ और तमोगुण की अधिकता है। कफ और तमोगुण दोनों ही आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत से संबंधित हैं, जिनमें वात, पित्त, और कफ शामिल हैं। ये त्रिदोष शरीर और मन की संरचना और कार्यप्रणाली को संतुलित रखते हैं।

**कफ और तमोगुण का प्रभाव:**

1. **कफ दोष:** कफ की अधिकता से शरीर में स्थिरता और भार बढ़ता है। इसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति में आलस्य, उदासी, और भारीपन की अनुभूति होती है। कफ दोष से संबंधित बीमारियों में न्यूमोनिया, स्नोफिलिया आदि शामिल हैं, जो श्वसन प्रणाली को प्रभावित करती हैं।

2. **तमोगुण:** तमोगुण मानसिकता में स्थिरता, आलस्य, और अज्ञानता का प्रतीक है। जब तमोगुण की अधिकता होती है, तो व्यक्ति में मानसिक सुस्ती, नकारात्मकता और चिंतन की कमी देखी जाती है। यह गुण व्यक्ति को अनियंत्रित और निष्क्रिय बना देता है।

**निद्रा की आवश्यकता:**

शरीर की प्रकृति और दोषों के अनुसार निद्रा की अवधि में भी भिन्नता होती है। यदि व्यक्ति कफ रोग से ग्रसित है, तो उसे सामान्य से अधिक नींद की आवश्यकता हो सकती है। यह स्थिति शरीर की विकृति के कारण उत्पन्न होती है, और इसलिए इस समय अधिक नींद लेना शरीर के लिए आवश्यक है। दूसरी ओर, तमोगुण प्रधान व्यक्तियों के लिए अधिक नींद की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे नियंत्रित करना आवश्यक होता है।

**सामान्य निद्रा अवधि:**

आमतौर पर, स्वस्थ व्यक्ति के लिए आठ घंटे की नींद को सामान्य माना जाता है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार, यह अवधि व्यक्ति की प्रकृति, दोष और स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करती है। जिन लोगों में कफ और तमोगुण की प्रधानता होती है, उनके लिए आठ घंटे की नींद आवश्यक हो सकती है। वहीं, अन्य लोग अपनी आवश्यकता के अनुसार छः से आठ घंटे की नींद ले सकते हैं।

**आदर्श निद्रा के लिये समय और वातावरण**

आयुर्वेद में निद्रा का समय और वातावरण अत्यधिक महत्व रखते हैं। आदर्श रूप से, रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक की नींद को सबसे उपयुक्त माना गया है, क्योंकि यह शरीर की जैविक घड़ी और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाती है। रात के इस समय में शरीर प्राकृतिक रूप से विश्राम के लिए तैयार होता है। इसके अलावा, सोने से पहले वातावरण को शांत और आरामदायक बनाना भी आवश्यक है। हल्की रोशनी, शांत संगीत, और ध्यान या प्राणायाम जैसी गतिविधियाँ मानसिक तनाव को कम करती हैं और निद्रा की गुणवत्ता को बेहतर बनाती हैं। आयुर्वेद यह भी सलाह देता है कि सोने से पहले तैलीय सिर मालिश या पैरों की मालिश की जाए, जिससे गहरी और संतोषजनक नींद आ सके।

**निद्रा दोष और उनके समाधान**

निद्रा के असंतुलन को आयुर्वेद में एक प्रमुख स्वास्थ्य समस्या माना गया है। यह वात, पित्त और कफ दोष के असंतुलन के कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए, वात दोष की अधिकता से अनिद्रा या बेचैनी हो सकती है, जबकि पित्त दोष से नींद के बीच में बार-बार जागना आम है। दूसरी ओर, कफ दोष की प्रधानता अत्यधिक नींद और आलस्य का कारण बन सकती है। इन दोषों को संतुलित करने के लिए आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों जैसे अश्वगंधा, शंखपुष्पी, और ब्राह्मी का सेवन उपयोगी होता है। इसके अतिरिक्त, तिल का तेल, लौंग, या जायफल के उपयोग से निद्रा को प्रोत्साहित किया जा सकता है। योग और ध्यान की नियमित प्रैक्टिस भी निद्रा संबंधी समस्याओं को दूर करने में सहायक होती है। अपने आयुर्वेदिक प्रैक्टिस में सबसे अच्छा परिणाम मुझे ‘पिप्लामूलादि चूर्ण ‘ से मिला। यह समय पर ही यानि रात्रि में नींद लाता है तथा कुछ महीने लगातार सेवन से इस समस्या को जङ से ठीक कर देता है। फिर यह बन्द तो भी नींद समय से आयेगी।

**निष्कर्ष:**

आयुर्वेद में निद्रा को जीवन के लिए आवश्यक माना गया है, और इसकी अवधि व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति, दोष, और मानसिकता के अनुसार बदल सकती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि हम अपने शरीर की आवश्यकता को समझें और उसी के अनुसार नींद लें।

निद्रा का सही समय और उसकी गुणवत्ता स्वास्थ्य की दृष्टि से उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि आहार और व्यायाम। इसके लिए शरीर की प्रकृति को समझना और उसी के अनुसार निद्रा की अवधि निर्धारित करना अत्यंत आवश्यक है।

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अंग्रेजी में पढने के लिये क्लिक करें – https://ajitayurved.in/daily-normal-sleping-hours/

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Comments

6 responses to “**आयुर्वेद में निद्रा का महत्व और उसकी आदर्श अवधि**”

  1. कफ प्रकृति और कफरोग के अन्तर ?

    1. प्रकृति से बोध है जन्मजात शरीर-संरचनि। कफरोग तो एक रोग है जिसकी चिकित्सा होनी चाहिए उसे खत्म होने तक।

    2. प्रकृति – शरीर की सामानय स्थिति, हानिरहित। कफरोग तो रोग हुआ न !

  2. Retd Subedar Ajay Kumari Roy. Muzaffarpur. Avatar
    Retd Subedar Ajay Kumari Roy. Muzaffarpur.

    I think diseased state does not cause sleep but the onset of healing by right medicins or whatever !

  3. Sharad Durafe Avatar
    Sharad Durafe

    I am regularly consuming medicines on psychological disorders. I am feeling much better with medicines. These medicines are having long lasting effects.

    1. Of which pathy ? If allopathic, is doing only symptom control, not curing. Ayurved cures, if curable. At least my vaidya group will give clear picture.
      Please send test reports.

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