दही – गर्म या ठंढा

आयुर्वेद में दही को गर्म क्यों माना गया है?

एक विस्तृत वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक विश्लेषण

भ्रांति और वास्तविकता

अधिकांश लोग दही को ठंडा समझते हैं, खासकर गर्मियों में इसके सेवन की सलाह दी जाती है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार, दही की तासीर गर्म (उष्ण वीर्य) होती है। यह विरोधाभासी लगता है, परंतु आयुर्वेदिक सिद्धांतों और आधुनिक विज्ञान दोनों ही इसकी पुष्टि करते हैं।

दही की तासीर गर्म क्यों?

लैक्टोबैसिलस बैक्टीरिया का प्रभाव:

दही में मौजूद लैक्टोबैसिलस नामक सूक्ष्मजीव पाचन तंत्र में रासायनिक प्रतिक्रियाएँ करते हैं। ये प्रत िक्रियाएँ शरीर में गर्मी उत्पन्न करती हैं, जिससे दही को “उष्ण वीर्य” माना जाता है।

पाचन के बाद अम्लीय प्रभाव:

दही पचने के बाद अम्लीय हो जाता है, जो पित्त दोष को बढ़ाता है। पित्त का संबंध शरीर की मेटाबॉलिक गर्म ी से है, इसलिए यह अप्रत्यक्ष रूप से गर्मी बढ़ाता है।

कफ बढ़ाने वाला गुण:

दही अभिष्यंदी (श्लेष्मा बढ़ाने वाला) होता है, जिससे शरीर के स्रोतों (जैसे रक्तवाहिकाएँ) में अवरोध प ैदा हो सकता है। यही कारण है कि सर्दी-जुकाम होने पर दही से परहेज किया जाता है।

दही का सही सेवन कब और कैसे करें?

सेवन के लिए उपयुक्त समय:

सर्दी के मौसम (हेमंत, शिशिर) और वर्षा ऋतु में दही का सेवन फायदेमंद है, क्योंकि यह शरीर को गर्मी दे कर ऊर्जा प्रदान करता है।

गर्मियों में दही को लस्सी या छाछ के रूप में सेवन करें। इसमें शक्कर, जीरा या काला नमक मिलाकर इसकी ग र्म तासीर को संतुलित किया जा सकता है।

किन्हें नहीं खाना चाहिए?

  • सर्दी-जुकाम, बुखार, सूजन होने पर
  • पीलिया, रक्तपित्त (ब्लीडिंग डिसऑर्डर), मोटापा, हाई कोलेस्ट्रॉल, एसिडिटी वालों को
  • जोड़ों के दर्द (आर्थराइटिस) से पीड़ित लोग
  • वसंत (चैत्र-बैशाख), ग्रीष्म (जेठ-आषाढ़), शरद (आश्विन-कार्तिक) ऋतुओं में सेवन न करें

आम धारणा क्यों गलत है?

लोग दही को ठंडा समझते हैं क्योंकि:

  • यह फ्रिज में रखा जाता है और ठंडा खाया जाता है
  • यह कफ बढ़ाता है, जिससे शरीर में भारीपन या जुकाम जैसे लक्षण दिखाई देते हैं (जो ठंडे प्रभाव जैसे
    लगते हैं)

लेकिन वास्तव में, इसका आंतरिक प्रभाव गर्म होता है।

आयुर्वेद में दही की गर्म तासीर को समझने के लिए, यह जानना आवश्यक है कि दही में मौजूद लैक्टोबैसिलस जै

से सूक्ष्मजीव पाचन क्रिया में रासायनिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं, जो शरीर में गर्मी पैदा करते हैं

। यही कारण है कि दही को “उष्ण वीर्य” माना जाता है। हालाँकि, दही का सेवन करते समय इसकी अम्लीय प्रकृति और

पित्त दोष को बढ़ाने की संभावना को ध्यान में रखना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, दही का सेवन वसंत (चैत्र-

बैशाख), ग्रीष्म (जेठ-आषाढ़), और शरद (आश्विन-कार्तिक) ऋतुओं में नहीं करना चाहिए। गर्मियों में इसे लस्स

ी या छाछ के रूप में सेवन करना उपयुक्त होता है, जिसमें शक्कर, जीरा या काला नमक मिलाकर इसकी गर्म तासीर को

संतुलित किया जा सकता है।

आधुनिक विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है: दही में प्रोबायोटिक्स पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं, लेकिन अ

धिक मात्रा में सेवन से एसिडिटी या सूजन हो सकती है। शोधों से पता चला है कि संस्कारित दही (जैसे लस्सी) में

लैक्टोबैसिलस एसिडोफिलस की मात्रा सामान्य दही की तुलना में 40% अधिक होती है, जो आंतों के लिए लाभदायक है

। गर्भवती महिलाओं के लिए दही विशेष लाभकारी होता है, परंतु इसे सदैव सौंफ या मिश्री के साथ ही लेना चाहिए

। दक्षिण भारत में दही-चावल जैसे व्यंजनों में इसके गर्म प्रभाव को संतुलित करने की वैज्ञानिक पद्धति छिप

ी है।

निष्कर्षतः, दही के सेवन का सही समय, विधि और मात्रा का पालन करना आवश्यक है। यह न केवल एक खाद्य पदार्थ

है, बल्कि एक संपूर्ण जीवनशैली का हिस्सा है, जो प्राकृतिक संतुलन की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष

दही एक पौष्टिक आहार है, लेकिन इसकी गर्म तासीर के कारण इसे सही ऋतु और सही तरीके से ही खाना चाहिए। आ युर्वेद के अनुसार, संस्कारित दही (जैसे लस्सी) गर्मियों में बेहतर विकल्प है। स्वास्थ्य समस्याओं से बचने के लिए दही का सेवन सावधानीपूर्वक करें।

स्मरण रखें: “आयुर्वेद की दृष्टि में कोई भी आहार अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि उसका सही उपयोग ही उ से औषधि बनाता है।”


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