
रूमेटिक आर्थराइटिस ( RA) को आयुर्वेद में वातरक्त कहा जाता है। यह छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है। एलोपैथ वाले इसे ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर समूह में रखते हैं।
गाउट ( Gout), गठिया – दोनों पैथी कहते हैं, रक्त में यूरिक एसिड का बढ़ना। यह अलग बीमारी है।
अमृतादि गुग्गुलु, कैसर गुग्गुलु, महातिक्त घृत, महारास्नदी क्वाथ चूर्ण, सिंघनाद गुग्गुलु और खुलसा चूर्ण (कब्जनाशक) – R A के लिए मुख्य आयुर्वेदिक दवाएं।
बाहरी – अजवाइन, सेंधा लवण, फिटकिरी सम्भाग को पानी में मिलाकर उबालें। यदि सम्भव हो तो दर्द वाली जगह पर 15 मिनट के लिए भाप लगाएं। फिर उबलते हुए बर्तन को आग से नीचे लाएं, रुई के फाहे या रुमाल को भिगो दें और दर्द वाली जगह पर तब तक सेक करें जब तक कि पानी ठंढी न हो जाए। अब त्वचा को सुखाएं और समान अनुपात में मिलाकर महानारायण तैलम + महाविषगर्भ तैलम + महामास तैलम लगाएं।
सभी एक महीने के लिए। ज्यादा फायदा नहीं हुआ तो – अब हमें स्वर्ण भस्म औषधि वृहद्वात चिंतामणि रस की ओर जाना होगा, जिसकी कीमत अकेले 6000 रुपये (2023 में) प्रति माह होगी। यह अन्य सहायक दवाओं के साथ दिया जाएगा जो इतने महंगे नहीं। उपरोक्त सभी भी साथ चलेंगे। मौखिक सेवन के लिए सभी।
यह सामान्य दिशानिर्देश है। रोगी की विशिष्ट स्थिति के आधार पर आयुर्वेदिक चिकित्सक उपरोक्त से थोङा अलग चिकित्सा दे सकते हैं।
रूमेटिक आर्थराइटिस/वातरक्त आयुर्वेद में पूरी तरह से इलाज योग्य है, ठीक होता है।
क्या होती है यूरिक एसिड की बीमारी, जो आजकल लोगों में बहुतायत रूप में पाई जाने लगी है? गठिया/गाउट कहते इसे।
चयापचय असंतुलन ( Metabolic Disorder) ।
शरीर संचालन हेतु DNA, RNA को Purine चाहिये। यह कई खाद्य पदार्थों से वह लेता है, शरीर स्वयं भी बनाता है। यह अपनी उम्र पूरा करके टूट कर यूरिक एसिड बनाता है। ज्यादा प्यूरिन बनेगा तो यूरिक एसिड भी ज्यादा बनेगा। यह ज्यादा मिलता है मांसाहार, अण्डे, दूध ( fatless skimmed milk लाभदायक है) व उससे बने खाद्य, कोल्ड ड्रिंक, अल्कोहल से। अतः गठियाग्रस्त में ये बन्द। पेट में गैस बनने से भी यह बनता अतः मटर, पालक, दोनों गोभी, oatmeal, भिण्डी, अरबी बन्द। वजन अधिक होगा तो भी प्यूरिन अधिक बनेगा, घटायें। अधिक मूत्र लाने वाली अंग्रेजी दवा ( Diuretics) भी बन्द।
Coffee- मात्र 2 कप रोज , लाभदायक है। केला, सेव, नारंगी, नींबू , आलू, लौकी, करेला, गोखरू लाभदायक हैं।
सबसे लाभदायक तो हैं योगराज गुग्गुल, चन्द्रप्रभा वटी, महारास्नादि काढा। वैद्य द्वारा हस्तनिर्मित ही लें।
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