आज भारत का सबसे रंगीन जगह गोवा है। टूरिज्म, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्म गोवा गेम – गोवा का नाम सभी जगह रहना है। दिखता नहीं जो वह है इसके आजादी का संघर्ष, विदेशी शासन के अत्याचारों की विभीषिका। 18 जून 1946 गोवा के स्वतंत्रता संग्राम का निर्णायक तिथि था।
भारत की स्वतंत्रता की कहानी जितनी व्यापक है, उतनी ही विविध भी। जब 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ, तब भी गोवा, दमन और दीव जैसे कुछ हिस्से विदेशी शासन में थे। गोवा पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा 1510 से था, और वहाँ की जनता को आज़ादी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष में 18 जून 1946 का दिन एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आया, जब डॉ. राममनोहर लोहिया ने गोवा के लोगों को पुर्तगाली शासन के खिलाफ संगठित किया और आज़ादी की अलख जगाई।

गोवा पर पुर्तगाली शासन की पृष्ठभूमि
गोवा पर पुर्तगाली शासन 1510 में शुरू हुआ था, जब पुर्तगालियों ने बीजापुर के सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को हराकर यहाँ कब्ज़ा जमाया। इसके बाद लगभग 450 सालों तक गोवा पुर्तगाल के अधीन रहा। इस दौरान स्थानीय संस्कृति, धर्म और सामाजिक ताने-बाने पर गहरा असर पड़ा। धर्मांतरण, सेंसरशिप और दमन के अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिससे स्थानीय जनता में असंतोष पनपता गया।
प्रारंभिक विद्रोह और आंदोलन
गोवा की आज़ादी के लिए संघर्ष 16वीं सदी से ही शुरू हो गया था। 1583 में कुंकली विद्रोह, 1788 में पिंटो विद्रोह और 1755-1912 के बीच राणे विद्रोह जैसे कई आंदोलन हुए। इन आंदोलनों ने गोवा की जनता में स्वतंत्रता की भावना को जीवित रखा। 1928 में टीबी कुन्हा ने गोवा कांग्रेस कमेटी का गठन किया, जिसने सत्याग्रह और अहिंसा के माध्यम से जनजागरण किया।
18 जून 1946 : आंदोलन की निर्णायक शुरुआत
1946 में जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था, तब भी गोवा पुर्तगालियों के कब्ज़े में था। इसी वर्ष 18 जून को समाजवादी नेता डॉ. राममनोहर लोहिया ने गोवा के मडगांव में एक ऐतिहासिक सभा की। उन्होंने डॉ. जुलियो मेनजेस के साथ मिलकर गोवा की जनता को पुर्तगाली दमन के खिलाफ संगठित किया। इस सभा में भारी बारिश के बावजूद सैकड़ों लोग जुटे और पहली बार खुलेआम पुर्तगाली शासन का विरोध किया गया। लोहिया को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन जनता के दबाव के कारण उन्हें रिहा करना पड़ा।
18 जून का महत्व
- इस दिन को ‘गोवा क्रांति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- डॉ. लोहिया की पहल ने गोवा की आज़ादी के आंदोलन को नई दिशा दी।
- इसके बाद सत्याग्रह, प्रदर्शन और जनजागरण की लहर पूरे गोवा में फैल गई।
महिलाओं की भागीदारी
गोवा मुक्ति आंदोलन में महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सुधाताई जोशी, वत्सला किर्तानी, शारदा साव, सिंधू देसपांडे जैसी अनेक महिलाओं ने निडरता से सत्याग्रह किया और जेल गईं। 1955 के मापसा सत्याग्रह में महिलाओं ने तिरंगा लहराते हुए ‘जय हिंद’ के नारे लगाए, जिससे आंदोलन को नई ऊर्जा मिली।
अन्य प्रमुख नेता और संगठन
- महादेव शास्त्री जोशी और उनकी पत्नी सुधाताई ने आंदोलन को संगठित किया।
- भारतीय जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, कांग्रेस, हिन्दू महासभा, आर्य समाज जैसे संगठनों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई।
- 1955 के सत्याग्रह में हजारों सत्याग्रहियों ने भाग लिया, जिसमें 51 से अधिक लोग शहीद हुए।

गोवा की आज़ादी : अंतिम चरण
1950 के दशक में आंदोलन और तेज हुआ। 15 अगस्त 1955 को हजारों सत्याग्रही गोवा की सीमा में घुसे, जिस पर पुर्तगाली सेना ने गोलीबारी की। 1961 में भारत सरकार ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत सैन्य कार्रवाई की। 19 दिसंबर 1961 को पुर्तगाली गवर्नर ने आत्मसमर्पण किया और गोवा भारत का हिस्सा बन गया।
निष्कर्ष
गोवा की आज़ादी का आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अनूठा अध्याय है। 18 जून 1946 को डॉ. लोहिया की पहल ने गोवा के लोगों में आज़ादी की नई चेतना जगाई। इस संघर्ष में महिलाओं, युवाओं और विभिन्न संगठनों का योगदान अविस्मरणीय है। गोवा की आज़ादी हमें यह सिखाती है कि संगठित और अहिंसक संघर्ष, चाहे जितना लंबा क्यों न हो, अंततः सफलता की ओर ले जाता है।
यह लेख आपको गोवा के स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक यात्रा, 18 जून के महत्व और आंदोलन के विभिन्न पहलुओं की गहराई से जानकारी देता है, जो न केवल इतिहास की समझ बढ़ाता है, बल्कि प्रेरणा भी देता है।
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