उम्र आधारित गैस्ट्रिक चिकित्सा

प्रस्तावना

आयुर्वेद में उम्र के आधार पर (बचपन, व्यस्क, बुजुर्ग) गैस्ट्रिक समस्याओं की चिकित्सा दी जाती है। गैस्ट्रिक समस्याएं आजकल एक सामान्य लेकिन गंभीर स्वास्थ्य समस्या बन गई हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं। ये समस्याएं किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकती हैं और इनके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे अनियमित दिनचर्या, अस्वास्थ्यकर खानपान, और मानसिक तनाव।
यह प्राचीन चिकित्सा प्रणाली शरीर के विभिन्न दोषों—वात, पित्त, और कफ—को संतुलित करने पर केंद्रित है, जिससे शरीर में संतुलन स्थापित होता है और स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान होता है। आइए जानें कि कैसे आयुर्वेद उम्र के अनुसार गैस्ट्रिक समस्याओं का समाधान करता है।

### 1. बचपन की गैस्ट्रिक समस्याएं (कफ प्रधान दोष)

बचपन में कफ दोष का प्रभाव अधिक होता है, जिससे मुख्यतः कब्ज और अन्य गैस्ट्रिक समस्याएं भी अक्सर देखी जाती हैं। बच्चों के लिए, लवण भास्कर चूर्ण एक अत्यंत प्रभावी उपाय है। यह आयुर्वेदिक चूर्ण विभिन्न लवणों और जड़ी-बूटियों से मिलकर बना है, जो न केवल पाचन में सुधार करता है बल्कि भूख को भी बढ़ाता है। इसमें पाए जाने वाले घटक, जैसे कि सोंठ, मरीच, पिप्पली, और पंचलवण, बच्चों के पेट को आराम देते हैं और कब्ज जैसी समस्याओं को दूर करते हैं। यह चूर्ण बच्चों के लिए सुरक्षित और प्रभावी होता है, जिससे उनका पेट साफ रहता है और वे स्वस्थ रहते हैं।

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### 2. वयस्कों की गैस्ट्रिक समस्याएं (पित्त प्रधान दोष)

वयस्कों में पित्त दोष का प्रभाव अधिक होता है, जिससे सीने में जलन, एसिडिटी, और डकार जैसी समस्याएं होती हैं। अविपत्तिकर चूर्ण इस प्रकार की समस्याओं के लिए अत्यधिक लाभकारी है। इसमें लवंग (लौंग) के अलावे हरीतकी, बिभीतक, आमलकी, पिप्पली, शुंठी, और वासा जैसे तत्व शामिल होते हैं, जो पित्त दोष को संतुलित करते हैं और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत दिलाते हैं। इस चूर्ण का नियमित सेवन न केवल पाचन को बेहतर बनाता है बल्कि अल्सर जैसी समस्याओं में भी राहत प्रदान करता है। इसके अलावा, यह चूर्ण शरीर के अन्य अंगों, जैसे कि लिवर और किडनी, को भी स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होता है।

### 3. वरिष्ठ नागरिकों की गैस्ट्रिक समस्याएं (वात प्रधान दोष)

जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वात दोष का प्रभाव बढ़ता जाता है, जिससे गैस्ट्रिक समस्याएं और शरीर में दर्द उत्पन्न होता है। वह वात (वायु) जो पूरे शरीर में घूम-घूम कर पोषक तत्वों को भी घुमाती रहती थी अब स्वयं स्थिरता की ओर बढ रही है। ऐसा होता शरीर में मृत सेल जमा होने के कारण जो इसकी गति में अवरोध उत्पन्न करती है। जिस अंग में यह रुकी या इसकी गति सामान्य से कम हुई वह अंग कम चलायमान होने लगेगा। परिणाम दर्द, सूजन, वहां गर्मी बढना व लाली आना। वरिष्ठ नागरिकों के लिए आजमोदादि चूर्ण एक अद्भुत समाधान है। इसमें आजमोदा, सोंठ, और अजवायन जैसे तत्व होते हैं, जो वात दोष को संतुलित करते हैं और गैस्ट्रिक समस्याओं से राहत दिलाते हैं। इसके अलावा, यह चूर्ण शरीर के अन्य दर्द और सूजन को भी कम करता है, जिससे वृद्ध व्यक्तियों की समग्र सेहत में सुधार होता है। इस चूर्ण का सेवन वात जनित रोगों के लिए भी लाभकारी होता है और यह शरीर को संपूर्ण रूप से स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।

### अन्य आयुर्वेदिक उपचार

जब गैस्ट्रिक समस्याएं गंभीर हो जाती हैं, तो आयुर्वेद में कई अन्य प्रभावी औषधियां उपलब्ध हैं। इनमें सूतशेखर रस, कामदुधा रस, प्रवाल पंचामृत, आमलकी रसायन, मुलेठी चूर्ण, टंकण भस्म, हिंगवाष्टक चूर्ण, और शिलाजीत भस्म जैसी औषधियों द्वारा उपचार शामिल हैं। ये औषधियाँ पाचन तंत्र को सुधारने, एसिडिटी को कम करने, और शरीर के सभी दोषों को संतुलित करने में सहायक होती हैं। इनके अलावा, अभ्रक भस्म सत्पुटी भी सभी आयु समूहों के लिए एक सहायक उपचार के रूप में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है। अपने अनुभव के आधार पर कहूं तो जब समस्या समझ न आये, सही दवाओं का चयन न हो रहा हो तो बस अभ्रक भस्म शत्पुटी चला दो, कुछ लाभ तो दिखेगा ही। सही डायग्नोसिस के लिये समय भी जरूरी है जो मिल जायेगा।

### निष्कर्ष

आयुर्वेद एक समग्र चिकित्सा प्रणाली है, जो व्यक्ति की उम्र और दोषों के आधार पर सटीक उपचार प्रदान करती है। यदि आप या आपका कोई प्रियजन गैस्ट्रिक समस्याओं से पीड़ित हैं, तो आयुर्वेदिक परामर्श लेकर अपनी समस्याओं का सही समाधान पा सकते हैं। आयुर्वेद में न केवल गैस्ट्रिक समस्याओं को जङ से ठीक करने का उपचार उपलब्ध है, बल्कि यह जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बनाने का भी एक मार्गदर्शक है। आइए, आयुर्वेद के ज्ञान को अपनाएं और अपने जीवन को बेहतर बनाएं।

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Comments

2 responses to “उम्र आधारित गैस्ट्रिक चिकित्सा”

  1. राम राम जी,
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