(आयुर्वेद दिवस 23 सितम्बर के उपलक्ष में वैद्य अजित करण के दस दिवसीय आयुर्वेद लेखमाला की पहली कङी – 14 सितम्बर दिन 1: वह चमत्कारी कहानी जिसने केन्या से केरल तक सुर्खियाँ बटोरीं )

परिचय: जब आधुनिक चिकित्सा ने मान लिया था हार, तब आयुर्वेदिक चिकित्सा ने दिखाया रास्ता

आयुर्वेदिक चिकित्सा केवल जड़ी-बूटियों और मसालों का विज्ञान नहीं है; यह जीवन के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण है, जिसकी जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप की हज़ारों साल पुरानी संस्कृति में गहरे तक धँसी हैं। हर साल, 23 सितंबर को, हम इसी अमूल्य विरासत को सम्मान देने के लिए ‘आयुर्वेद दिवस’ मनाते हैं। इस महोत्सव की शुरुआत हम एक ऐसी ही अद्भुत और वास्तविक कहानी से कर रहे हैं, जो आयुर्वेद की शक्ति का एक जीवंत प्रमाण बन गई है – केन्या के प्रधानमंत्री की बेटी, रोजमेरी की कहानी।

यह कहानी साबित करती है कि जब आधुनिक विज्ञान सीमाओं को स्वीकार कर लेता है, तब भी प्रकृति और पारंपरिक ज्ञान के गर्भ में समाधान छिपे होते हैं।

पृष्ठभूमि: अंधकार में डूबता जीवन

रोजमेरी, केन्या के राष्ट्रपति लायला ओडिंगा की बेटी और एक गंभीर नेत्र रोग से ग्रस्त थीं। उनकी दृष्टि इतनी कमजोर हो गई थी कि दुनिया धुंधली और अंधकारमय होती जा रही थी।

किसी भी चिंतित व्यक्ति की तरह, उन्होंने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ चिकित्सकों से सलाह ली। केन्या और यूरोप के प्रतिष्ठित अस्पतालों और नेत्र विशेषज्ञों से इलाज कराया गया। हर जगह से जो जवाब मिला, वह निराशाजनक था। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान उनकी स्थिति को ‘लाइलाज’ (Incurable) घोषित कर चुका था। रोजमेरी और उनके परिवार के लिए, यह एक ऐसी निराशा थी, जिसने सबकुछ ग्रहण लगा दिया था।

आशा की किरण: केरल के आयुर्वेदिक अस्पताल का रुख

जब सब दरवाजे बंद हो गए, तब आखिरी उम्मीद के साथ, नाइना ने भारत के केरल राज्य स्थित ‘श्री धन्वंतरी आयुर्वेदिक अस्पताल’ (Sri Dhanwanthari Ayurveda Hospital) का रुख किया। केरल को भारत में आयुर्वेद की राजधानी माना जाता है, और यह अस्पताल इस क्षेत्र में एक प्रमुख नाम है।

यहाँ के वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. एस. हरीश कुमार ने उनका इलाज संभाला। डॉ. कुमार ने आधुनिक रिपोर्ट्स देखने के बजाय पहले आयुर्वेद की पारंपरिक निदान पद्धतियों पर भरोसा किया। उन्होंने नाड़ी परीक्षण (स्पंदन से रोग का पता लगाना) और अन्य तरीकों से रोजमेरी के शरीर की प्रकृति (वात, पित्त, कफ दोष) और रोग की जड़ का पता लगाया। आयुर्वेद का मानना है कि कोई भी रोग शरीर में असंतुलन का परिणाम होता है, और उस असंतुलन को ठीक करके रोग को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रक्रिया: आयुर्वेद की समग्रता का एक उदाहरण

डॉ. कुमार द्वारा निर्धारित उपचार योजना सिर्फ आँखों तक सीमित नहीं थी, बल्कि पूरे शरीर और मन को केंद्र में रखकर बनाई गई थी। इसमें मुख्य रूप से शामिल थे:

  • पंचकर्म थेरेपी: यह आयुर्वेदिक चिकित्सा की सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं में से एक है। इसका उद्देश्य शरीर से विषाक्त पदार्थों (जिन्हें आयुर्वेद में ‘अमा‘ कहा जाता है) को बाहर निकालना है। नाइना के लिए विशेष डिटॉक्सिफिकेशन प्रक्रियाएँ अपनाई गईं, ताकि उनके शरीर का प्राकृतिक संतुलन वापस लाया जा सके।
  • नेत्र तर्पण (Netra Tarpana): यह आँखों के लिए एक अत्यंत विशेष और प्रभावी आयुर्वेदिक उपचार है। इसमें आँखों के चारों ओर एक प्राकृतिक आटे (जैसे चने का आटा) का घेरा बनाया जाता है और उसमें औषधीय गुणों से भरपूर विशेष प्रकार का घी (मेडिकेटेड घी) भर दिया जाता है। इस घी में आँखों को 20-30 मिनट तक डुबोकर रखा जाता है। इस प्रक्रिया से आँखों की नसों, मांसपेशियों और कोशिकाओं को गहन पोषण और पुनर्जीवन मिलता है। यह तनाव दूर करती है और दृष्टि को तेज करने में मदद करती है。
  • हर्बल औषधियाँ और आयुर्वेदिक घटक: उन्हें आँखों की रोशनी बढ़ाने वाली और रक्त संचार में सुधार लाने वाली जड़ी-बूटियों से बनी दवाएँ दी गईं। इनमें आंवला (विटामिन C से भरपूर), त्रिफला, शतावरी और अन्य मूल्यवान हर्बल घटक शामिल थे।
  • आहार और जीवनशैली में परिवर्तन (पथ्य-अपथ्य): आयुर्वेद में, केवल दवा ही काफी नहीं होती। डॉ. कुमार ने रोजमेरी के लिए एक विशेष आहार चार्ट तैयार किया, जो उनकी शारीरिक प्रकृति के अनुकूल था। जीवनशैली में सकारात्मक बदलावों पर भी जोर दिया गया।

चमत्कारिक परिणाम: अंधकार से उजाले की ओर

कुछ हफ्तों की गहन चिकित्सा के बाद ही, रोजमेरी की दृष्टि में सुधार के पहले लक्षण दिखाई देने लगे। धुंधला दिखना कम हुआ और रोशनी का एहसास बढ़ने लगा। निरंतर और नियमित उपचार के बाद, परिणाम इतने सकारात्मक थे कि यह एक ‘चमत्कार’ जैसा लग रहा था।

उनकी दृष्टि में इतना उल्लेखनीय सुधार हुआ कि वह फिर से पढ़ने, लिखने, चलने-फिरने में सहारे की आवश्यकता खत्म हो गयी। वह कहानी जो ‘लाइलाज’ के साथ शुरुआत हुई थी, वह ‘पूर्ण स्वास्थ्य लाभ’ के साथ समाप्त हुई। यह सफलता न केवल रोजमेरी और उनके परिवार, बल्कि पूरे चिकित्सा जगत के लिए एक आश्चर्य और एक नई सीख थी।

निष्कर्ष और वैश्विक प्रभाव: आयुर्वेद ने बढ़ाया भारत का मान

रोजमेरी का यह उपचार केवल एक मरीज का इलाज नहीं रह गया था; यह आयुर्वेद की शक्ति का एक अंतर्राष्ट्रीय प्रमाण बन गया।

  • राष्ट्रपति का आभार: केन्या के राष्ट्रपति लायला ओडिंगा ने स्वयं इस उपचार की सराहना की और आयुर्वेदिक चिकित्सा पर अपना विश्वास जताया। उन्होंने कहा कि यह भारत और केन्या के बीच स्वास्थ्य सहयोग के क्षेत्र में एक नई शुरुआत है।
  • आयुर्वेद की वैश्विक पहचान: इस घटना ने वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद की विश्वसनीयता को एक नया आयाम दिया। इसने साबित कर दिया कि आयुर्वेद केवल छोटे-मोटे रोगों का इलाज नहीं, बल्कि गंभीर से गंभीर चिकित्सीय चुनौतियों का भी एक सटीक और प्रभावी समाधान है।
  • एक आशा की किरण: दुनिया भर के उन लाखों लोगों के लिए यह कहानी एक आशा की किरण बनकर उभरी, जो पुराने या ‘लाइलाज’ माने जाने वाले रोगों से जूझ रहे हैं।

यह कहानी हमें सिखाती है कि प्रकृति की गोद में छिपे ज्ञान को, जब अनुभव और विज्ञान के साथ जोड़ दिया जाए, तो वह चमत्कारिक परिणाम दे सकता है। आयुर्वेद कोई जादू की छड़ी नहीं है; यह एक सुविचारित, वैज्ञानिक और समग्र चिकित्सा पद्धति है, जो रोग के मूल कारण को ढूँढ़कर उसे जड़ से समाप्त करने पर विश्वास रखती है।

कल पढ़िए दिन 2: “आयुर्वेद और मानसिक स्वास्थ्य: अवसाद और चिंता को जड़ से खत्म करने की कहानी” – जानिए कैसे आयुर्वेदिक थेरेपी ने एक युवा की जिंदगी से अवसाद का अंधेरा दूर किया।

स्रोत एवं अतिरिक्त पठन हेतु: