*”मैं एक इंसान हूँ, और जो कुछ मानवता के हित में है, उसके बारे में सोचने का अधिकार मेरा है।”* — शहीद भगत सिंह
यह आलेख भगत सिंह को एक सशस्त्र क्रांतिकारी और विचारक के रूप में पेश करता है, जिनकी दृष्टि आज भी भारत के सामाजिक-आर्थिक संघर्षों को दिशा दे सकती है। उनकी कलम और विचारधारा न केवल इतिहास की धरोहर हैं, बल्कि वर्तमान के लिए एक मशाल भी।
### **परिचय: एक बुद्धिजीवी क्रांतिकारी का उदय**
भगत सिंह का नाम लेते ही अक्सर बम, पिस्तौल और फाँसी की छवि उभरती है। लेकिन यह युवा क्रांतिकारी केवल “शहीद” नहीं, बल्कि एक प्रखर चिंतक, लेखक और समाजवादी विचारक भी था। उन्होंने 23 वर्ष की अल्पायु में ही भारत को सिर्फ़ राजनीतिक आज़ादी नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय, शिक्षा और बौद्धिक क्रांति का खाका दिया। उनका संदेश था: *”क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज़ होती है।”*

### **बचपन से बुद्धिमत्ता तक: विचारधारा का निर्माण**
28 सितंबर 1907 को एक देशभक्त सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह के रगों में बचपन से ही देशप्रेम कूट-कूटकर भरा था। 1919 के **जलियाँवाला बाग हत्याकांड** ने 12 साल के भगत को झकझोर दिया। उन्होंने घटनास्थल की मिट्टी माथे से लगाकर प्रतिज्ञा की: *”अंग्रेज़ों की गुलामी का अंत करूँगा!”*
#### शिक्षा और वैचारिक विकास:
– **लाहौर के नेशनल कॉलेज** में उन्होंने मार्क्स, लेनिन और आयरिश क्रांति का अध्ययन किया।
– **भगवद्गीता** से लेकर **विक्टर ह्यूगो** के साहित्य तक—उनकी पढ़ाई का दायरा अद्भुत था।
– उनका निष्कर्ष था: *”साम्राज्यवाद और पूँजीवाद एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो गरीबों का शोषण करते हैं।”*

### **कलम से क्रांति: लेखन और विचारों का सैलाब**
भगत सिंह ने **नौजवान भारत सभा** और **हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन** के माध्यम से न केवल क्रांतिकारी कार्यवाहियाँ कीं, बल्कि अपनी कलम से समाज को जगाने का काम भी किया।
#### प्रमुख रचनाएँ और सिद्धांत:
1. **”क्यों मैं नास्तिक हूँ” (1930):**
– *”धर्म मनुष्य की दुर्बलता है। ईश्वर के नाम पर शोषण बंद होना चाहिए।”*
2. **”एक साम्राज्यवादी युद्ध की पूर्व संध्या पर”:**
– *”अंग्रेज़ भारत की लूट से अपने कारखाने चलाते हैं, जबकि यहाँ के किसान भूखे मरते हैं।”*
3. **दिल्ली असेम्बली बम कांड (1929):**
– फेंके गए पर्चे में लिखा: *”बहरों को सुनाने के लिए धमाके ज़रूरी हैं।”*

#### समाजवाद और स्त्री-मुक्ति:
– **”स्त्री की दशा”** जैसे लेखों में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और आर्थिक आज़ादी की वकालत की।
– उनका सपना था: *”एक ऐसा भारत जहाँ न कोई भूखा सोए, न कोई धर्म या जाति के नाम पर प्रताड़ित हो।”*
### **जेल: विचारों की प्रयोगशाला**
1929 में गिरफ्तारी के बाद, भगत सिंह ने जेल को अपनी “विचारशाला” बना लिया। यहाँ उन्होंने:
– **115 दिन की भूख हड़ताल** की, जिसके दौरान **लेनिन की जीवनी** और **भारतीय इतिहास** पर नोट्स लिखे।
– अदालत में कहा: *”मैं एक सिपाही नहीं, बल्कि एक विचारक हूँ। मेरा अपराध यह है कि मैंने भारत के शोषण के खिलाफ सोचा।”*
### **गांधी, सावरकर और भगत सिंह: तीन दृष्टियों का संघर्ष**
भगत सिंह की विचारधारा गांधी के **अहिंसा** और सावरकर के **हिंदुत्व** से भिन्न एक **वैश्विक समाजवादी मॉडल** थी:
1. **गांधी vs भगत सिंह:**
– गांधी ने सत्याग्रह को प्राथमिकता दी, जबकि भगत का मानना था: *”अत्याचारी को डराना उससे बातचीत से ज़्यादा प्रभावी है।”*
– पर दोनों **ग्रामीण उत्थान** और **सामाजिक न्याय** के हामी थे।
2. **सावरकर vs भगत सिंह:**
– सावरकर के **”हिंदू राष्ट्र”** के विचार के विपरीत, भगत सिंह ने **”धर्मनिरपेक्ष समाजवाद”** का सपना देखा।
– उनका कहना था: *”राष्ट्रवाद संकीर्ण नहीं होना चाहिए। मेरा भारत सभी धर्मों और वर्गों का है।”*

### **आर्थिक न्याय का स्वर: पूँजीवाद और साम्राज्यवाद पर प्रहार**
भगत सिंह ने आज़ादी को केवल “तिरंगा फहराने” तक सीमित नहीं समझा। उनके लिए स्वतंत्रता का अर्थ था:
– **”खेतिहर को ज़मीन, मजदूर को उसके श्रम का पूरा मूल्य।”**
– **रूसी क्रांति (1917)** से प्रेरित होकर, उन्होंने **सहकारी खेती** और **राष्ट्रीयकृत उद्योगों** की वकालत की।
– उनकी चेतावनी थी: *”साम्राज्यवाद गोरी चमड़ी वालों तक सीमित नहीं; भूमंडलीकरण के नए रूप भी खतरनाक हैं।”*
### **आधुनिक भारत के लिए प्रासंगिकता: विचारों की जंग जारी है**
भगत सिंह का विजन आज भी उतना ही प्रासंगिक है:
1. **धर्मनिरपेक्षता vs सांप्रदायिकता:**
– CAA-NRC विरोध प्रदर्शनों में उनका **”धर्मनिरपेक्ष समाजवाद”** का विचार मार्गदर्शक बन सकता है।
2. **किसान आंदोलन:**
– 2020-21 के किसान आंदोलन में उनकी **”किसान-मजदूर एकता”** की अवधारणा जीवित दिखी।
3. **शिक्षा और विज्ञान:**
– उनका **”अंधविश्वास मुक्त समाज”** का सपना आज के **”फेक न्यूज़”** और **”विज्ञान विरोध”** के युग में और भी ज़रूरी है।
#### **युवाओं के नाम संदेश:**
– *”क्रांति का अर्थ सिर्फ़ सरकार बदलना नहीं, बल्कि अपनी मानसिक गुलामी तोड़ना है।”*
– उनकी डायरी के अंतिम पृष्ठ पर लिखा था: *”ज़िंदगी तभी सार्थक है जब वह दूसरों के लिए जिए जाए।”*
### **निष्कर्ष: विचारों की अमरता**
23 मार्च 1931 को फाँसी के फंदे पर झूलते हुए भगत सिंह ने कहा था: *”मेरी मौत से भारत को जगाने का प्रयास करो।”* आज यह चुनौती हमारे सामने है: क्या हम उनके सपनों का भारत बनाने को तैयार हैं? उनकी विरासत हमें याद दिलाती है कि **”सच्ची शहादत वह है जो व्यवस्था को बदलने का साहस दे।”**
**सन्दर्भ स्रोत:**
1. [भगत सिंह के लेख और पत्र](https://www.mkgandhi.org/bsingh/)
2. प्रो. चमन लाल की पुस्तक *”भगत सिंह: द इंटलेक्चुअल आइकन”*
3. **”भगत सिंह: दि आइडियाज़ एंड एक्शन”** – सुखदेव सिंह
4. [नेशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया](https://nationalarchives.nic.in/)
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