**आयुर्वेद का ज्ञान: जनकवि घाघ के कहावतों में समाहित जीवनशैली और स्वास्थ्य के रहस्य**

आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति, समय की कसौटी पर खरा उतरा है। इसे सरल और जनसामान्य की भाषा में पहुँचाने का श्रेय, मुख्यतः जनकवि घाघ को जाता है। उनकी कहावतें न केवल तर्कसंगत हैं बल्कि भारतीय जीवनशैली का सटीक प्रतिनिधित्व करती हैं। इन कहावतों के माध्यम से घाघ ने जीवन के विभिन्न पहलुओं, विशेषकर स्वास्थ्य और खानपान पर अमूल्य सुझाव दिए हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

### किस महीने क्या नहीं खाना चाहिए?

जनकवि घाघ ने ऋतुचर्या और आहार-विहार पर विशेष ध्यान देते हुए सलाह दी है कि किस महीने क्या नहीं खाना चाहिए। उनकी एक प्रसिद्ध कहावत इस प्रकार है:

“**चैते गुड़, बैसाखे तेल, जेठे पंथ, असाढ़े बेल। 
सावन साग न भादों दही, क्वार करेला न कातिक मही। 
अगहन जीरा पूसे धना, माघे मिश्री फागुन चना। 
ई बारह जो देय बचाय, वहि घर वैद कबौं न जाय।**”

इस कहावत का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि सावन में साग खाने से बचने की सलाह दी गई है क्योंकि इस समय वातावरण में हरे रंग के कीड़ों की संख्या बढ़ जाती है। इसी तरह बैसाख में गर्मी के बढ़ते प्रभाव के कारण तेल का सेवन हानिकारक हो सकता है। जेठ के महीने में लू के चलते यात्रा करने से बचना चाहिए, जबकि आश्विन में ऋतु परिवर्तन के समय हल्का और साधारण भोजन उचित होता है।

### किस महीने क्या खाना चाहिए?

अब हम देखें कि घाघ ने किस महीने क्या खाना चाहिए, इस पर क्या सुझाव दिए हैं:

“**चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल। 
सावन हर्रे, भादो तिल, कुवार मास गुड़ सेवै नित। 
कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल। 
माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।**”

इस कहावत के अनुसार, चैत में चना और बैसाख में बेल फल का सेवन करना चाहिए। जेठ के महीने में दोपहर में सोने से स्वास्थ्य उत्तम रहता है और आषाढ़ में खेल-कूद करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। माघ के महीने में घी-खिचड़ी का सेवन करना चाहिए और फागुन में प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।

### घाघ: आयुर्वेद और जीवनशैली के अनूठे मार्गदर्शक

पं. रामनरेश त्रिपाठी ने घाघ के कार्यकाल को सम्राट अकबर के राज्यकाल से जोड़ा है। कहा जाता है कि घाघ का जन्म बिहार के छपरा में हुआ था और वे कन्नौज में आकर बस गए। घाघ के द्वारा लिखी कोई पुस्तक आज तक उपलब्ध नहीं हुई है, लेकिन उनकी कहावतें आज भी जीवित हैं, जो आयुर्वेद और कृषि विज्ञान पर आधारित हैं। घाघ की कहावतें उनके जीवन के अनुभवों का सार हैं, जिनमें उन्होंने स्वास्थ्य और खानपान पर विशेष ध्यान दिया है। 

### घाघ की कुछ अन्य प्रसिद्ध कहावतें

घाघ की कहावतें न केवल वैज्ञानिक रूप से सही हैं, बल्कि व्यावहारिक भी हैं। उदाहरण के लिए:

**”ज्यादा खाये जल्द मरि जाय, सुखी रहे जो थोड़ा खाय। 
रहे निरोगी जो कम खाये, बिगरे काम न जो गम खाये।”**

इस कहावत का अर्थ स्पष्ट है कि जो व्यक्ति अपनी भूख से कम खाता है, वह निरोगी रहता है और अधिक खाने वाले व्यक्ति को जल्दी स्वास्थ्य समस्याएं घेर लेती हैं।

**”जाको मारा चाहिए बिन मारे बिन घाव। 
वाको यही बताइये घुॅँइया पूरी खाव।।”**

इसमें घाघ ने सुझाव दिया है कि यदि किसी से शत्रुता हो तो उसे अरबी और पूड़ी खाने की सलाह दीजिए। इनके लगातार सेवन से कब्ज की समस्या हो जाती है और वह व्यक्ति बीमार हो सकता है।

**”प्रातःकाल खटिया से उठि के पिये तुरन्ते पानी। 
वाके घर मा वैद ना आवे बात घाघ के जानी।”**

प्रातःकाल उठते ही पानी पीने की सलाह दी गई है। इससे व्यक्ति का पाचन तंत्र बेहतर रहता है और उसे डॉक्टर के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

### निष्कर्ष

जनकवि घाघ की कहावतें न केवल तर्कसंगत हैं, बल्कि आज के समय में भी प्रासंगिक हैं। आयुर्वेद के सिद्धांतों को सरल भाषा में प्रस्तुत करने की उनकी शैली, आज भी लोगों के लिए मार्गदर्शक है। घाघ के इन बहुमूल्य ज्ञान को संकलित और संरक्षित करना आवश्यक है ताकि भविष्य की पीढ़ियां भी इनसे लाभ उठा सकें।

अगर आपको भी घाघ की कहावतों या आयुर्वेद से संबंधित जानकारी प्राप्त हो, तो कृपया साझा करें। इस संकलन को और भी समृद्ध बनाने के लिए आपका योगदान अनमोल होगा।

   – “जनकवि घाघ के द्वारा दी गई ऋतुचर्या की सलाह आयुर्वेदिक जीवनशैली के मूल सिद्धांतों पर आधारित है। आयुर्वेदिक ऋतुचर्या के बारे में अधिक जानकारी के लिए [Ayurvedic Ritu Charya Guidelines](https://www.nhp.gov.in/ritucharya_mtl) पर पढ़ सकते हैं।”

घाघ की कहावतों के महत्व को समझने के लिए आप [Sahitya Akademi](http://sahitya-akademi.gov.in/publications/booktitles/Ghagh_Aur_Bhaddari.htm) की पुस्तक ‘घाघ और भड्डरी’ को देख सकते हैं।”

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