आयुर्वेदिक समाधान से स्वस्थ जीवन!
कब्ज, जिसे कोष्टबद्धता भी कहते हैं, एक आम समस्या है जो अक्सर अनदेखी रह जाती है। यदि आप मलत्याग में कठिनाई, मल का कड़ा होना, या मल का रंग भूरा या काला होना जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं, तो यह समय है आयुर्वेदिक उपायों की ओर रुख करने का, कब्ज का परमानेंट ईलाज चाहिये आपको। आयुर्वेद के अनुसार, जठराग्नि (पेट की पाचक अग्नि) के कम होने से आंतों की गति और शक्ति में कमी आ जाती है, जिससे कब्ज की समस्या उत्पन्न होती है। आइए जानते हैं कैसे आप कुछ सरल आयुर्वेदिक उपायों से इस समस्या से निजात पा सकते हैं।

अपने दिन की शुरुआत कैसे करें
सुबह 4 बजे अपना दिन शुरू करें। बिना कुल्ला किए एक गिलास पानी पिएं। इसके बाद, एक चम्मच(अथवा शरीर वजन अनुसार अधिक) सोंठ चूर्ण और एक गिलास पानी मिलाकर इसे 15 मिनट तक धीमी आंच पर उबालें। इस समय का उपयोग शौच के लिए करें, भले ही आपको मल त्याग महसूस न हो, शौच करने की कोशिश करें। उबलने के बाद इस काढ़े में एक चम्मच या अधिक ( वजन अनुसार) एरण्ड तैलम मिलाएं और इसे गर्म ही पीएं। अब 4-5 घंटे तक कुछ भी न खाएं और न पिएं, यहां तक कि पानी भी नहीं।
सोंठ और एरण्ड तेल का प्रभाव
सोंठ का काढ़ा आंतों के अंदरूनी परत पर चिपके मल को गला देता है, जिससे आंतें मुक्त होती हैं और एरण्ड तेल का लेपन आंतों में मल को दुबारा जमने नहीं देता। इससे आंतों में पुनः लचीलापन आता है और लहरें (peristaltic movement) पहले से बेहतर चलने लगती हैं, जिससे मल त्याग में आसानी होती है। यही स्थिति कुछ समय बनी रहे तो सोंठ तथा एरण्ड तेलम् के सहारे बिना ही काम होने लगता है। आयुर्वेद निर्भरता नहीं बढाता आरोगय प्रदान करता है।
दिनचर्या में त्रिफला का महत्व
नाश्ते के बाद एक चम्मच या अधिक त्रिफला चूर्ण का काढ़ा बनाएं। इसके साथ आरोग्य वर्धनी वटी की गोलियाँ लेनी है और उसे चबाकर ही निगलना है। यह दिन में दो बार करें, सुबह नाश्ते के बाद और रात को खाने के बाद। त्रिफला चूर्ण और आरोग्य वर्धनी वटी का संयोजन जठराग्नि को मजबूत करता है और आंतों को स्वस्थ रखता है। यहां याद रखें ये दोनों किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक की हस्तनिर्मित ही लें। उनके बनाये त्रिफला में हर्रे, बहेङा, आंवला के बीज को चूर कर नहीं मिलाया गया होगा, इसके लिये बङे मशीन (Crusher) की आवश्यकता होती है जो उनके पास हो नहीं सकता (कम्पनी वाले रखते)। गुणवत्ता का यही मसला आरोग्य वर्धनी वटी के साथ भी रहता है। हस्तनिर्मित है तो निर्माण के विधि-विधान का पालन हुआ।
पंच-हरण चूर्ण का उपयोग
रात को खाने के बाद त्रिफला चूर्ण के काढ़े के साथ आरोग्य वर्धनी वटी का सेवन करें, जैसा ऊपर बताया गया है। दस मिनट बाद सही मात्रा में पंच-हरण चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ लें और सो जाएं। अगर दो दिन में मल त्याग शुरू न हो तो पंच-हरण चूर्ण की मात्रा को बढा दें।
आयुर्वेदिक उपचार के लाभ
आयुर्वेदिक उपचार के नियमित उपयोग से आपकी आंतें स्वस्थ रहती हैं और कब्ज की समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिलता है। मैंने अपने आयुर्वेदिक अभ्यास में कभी ऐसा कोई मरीज नहीं देखा जिसने इस उपचार के बाद अच्छी प्रतिक्रिया न दी हो। दो-तीन महीने तक इस उपचार को जारी रखें। अगर रोजाना दो से ज़्यादा बार मल त्याग हो तो खुराक कम करने की ज़रूरत होगी। धीरे-धीरे सभी उपायों को बंद कर दें और आप कब्ज से मुक्त हो जाएंगे। बस एक बात ध्यान रहे – सही डोज निर्धारण किसी प्रैक्टिशिंग वैद्य के निर्देशानुसार तथा दवायें भी उनकी ही बनायी हस्तनिर्मित।
पुनः कब्ज होने पर क्या करें
वैसे उपरोक्त विधि कब्ज का परमानेंट ईलाज देती हैं मगर यदि भविष्य में कभी कब्ज की समस्या दोबारा हो, तो इन उपायों को फिर से शुरू करने में संकोच न करें। ये उपाय न केवल कब्ज को दूर करते हैं, बल्कि आपके पाचन तंत्र को भी मजबूत बनाते हैं।
स्वास्थ्य के अन्य आयुर्वेदिक सुझाव
आयुर्वेद में कई अन्य उपाय भी हैं जो कब्ज और अन्य पाचन समस्याओं से राहत दिला सकते हैं। आप अदरक, अजवाइन और हींग का सेवन कर सकते हैं। इसके अलावा, नियमित योग और प्राणायाम भी पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं।
ध्यान दें:
– हमेशा ताजे और स्वस्थ भोजन का सेवन करें।
– नियमित रूप से पानी पीते रहें।
– तले-भुने और मसालेदार भोजन से यथासम्भव परहेज करें।
आयुर्वेद की शरण में आकर न केवल कब्ज से बल्कि अन्य पाचन समस्याओं से भी मुक्त हो सकते हैं। इस ज्ञान को अपने जीवन में अपनाएं और स्वस्थ जीवन का आनंद लें।
(हम अपने आयुर्वेदिक वैद्यों के समूह में ये सभी दवाइयाँ बनाते हैं – हस्तनिर्मित। भारत और विदेशों में अपने मरीजों को रजिस्टर्ड पोस्ट पार्सल / स्पीडपोस्ट द्वारा भेजे जाते हैं। संपर्क करें व्हाट्सएप और फोन +91 98351 93062)
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